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वैदेही-वनवास
तुम जितनी हो, कैकेयी को।
है न माण्डवी उतनी प्यारी॥
वधुओं बलित सुमित्रा में भी।
देखी ममता अधिक तुमारी ॥३३॥
फिर जिसकी आँखों की पुतली ।
लकुटी जिस वृद्धा के कर की।
छिनेगी न कैसे वह कलपे।
छाया रही न जिसके सिर की ॥३४॥
जिसकी हृदय - वल्लभा तुम हो।
जो तुमको पलकों पर रखता।
प्रीति - कसौटी पर कस जो है।
पावन - प्रेम - सुवर्ण परखता ॥३५॥
जिसका पत्नी - व्रत प्रसिद्ध है।
जो है पावन • चरित कहाता ।।
देख तुमारा अरविन्दानन ।
जो है विकच - वदन दिखलाता ॥३६॥
जिसकी सुख - सर्वस्व तुम्ही हो।
जिसकी हो आनन्द - विधाता ।।
जिसकी तुम हो शक्ति - स्वरूपा ।
जो तुम से पौरुप है पाता ॥३७॥