पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/१३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

षष्ठ सर्ग

मत रोना भूल न जाना।
कुल - मंगल सदा मनाना ।।
कर पूत - साधना अनुदिन ।
वसुधा पर सुधा वहाना ॥८८।।

दोहा

इसी समय आये वहाँ, धीर - वीर - रघुवीर।
बहने विदा हुई बरस नयनों से बहु - नीर ॥८९।।