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सप्तम सर्ग
कमल - नयन राम ने कमल से-
मृदुल करों से पकड़ प्रिया-कर ॥
दिखा हृदय - प्रेम की प्रवणता।
उन्हें बिठाला मनोज्ञ रथ पर ॥२४॥
उचित जगह पर विदेहजा को।
विराजती जब विलोक पाया ।
सवार सौमित्र भी हुए तब ।
सुमित्र ने यान को चलाया ॥२५॥
बजे मधुर - वाद्य तोरणों पर ।
सुगान होता हुआ सुनाया ।।
हुए विविध मंगलाचरण भी।
सजल - कलस सामने दिखाया ।।२६।।
निकल सकल राज - तोरणों से ।
पहुँच गया यान जब वहाँ पर ।।
जहाँ खड़ी थी अपार - जनता ।
सजी सड़क पर प्रफुल्ल होकर ॥२७॥
बड़ी हुई तव प्रसून - वर्पा।
पतिव्रता जय गई बुलाई ।।
सविधि गई आरती उतारी।
बड़ी धूम से वजी बधाई ॥२८॥