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पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/१४०

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वैदेही-वनवास

इसी समय दिव्य - राज - मन्दिर ।
ध्वनित हुआ वेद - मंत्र द्वारा ।।
हुई सकल - मांगलिक क्रियाये ।
वही रगों में पुनीत - धारा ॥१९॥

क्रियान्त में चल गयंद - गति से।
विदेहजा द्वार पर पधारी ॥
बजी बधाई मधुर स्वरों से।
सुकीर्ति ने आरती उतारी ॥२०॥

खड़ा हुआ सामने सुरथ था।
सजा हुआ देवयान जैसा ।
उसे सती ने विलोक सोचा।
प्रयाण में अब विलम्ब कैसा ॥२१॥

वशिष्ठ देवादि को विनय से।
प्रणाम कर कान्त पास आई।
इसी समय नन्दिनी जनक की।
अतीव - विह्वल हुई दिखाई ॥२२॥

परन्तु तत्काल ही संभल कर।
निदेश मॉगा विनम्र वन के ।
परन्तु करते पदाब्ज - वन्दन ।
विविध वने भाव वर - वदन के ॥२३॥