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था संध्या का समय भवन मणिगण दमक ।
दीपक - पुंज समान जगमगा रहे थे।
तोरण पर अति-मधुर-वाद्य था बज रहा ।
सौधो मे स्वर सरस - स्रोत से बहे थे ॥१॥
काली चादर ओढ़ रही थी यामिनी ।
जिसमे विपुल सुनहले बूटे थे वने ॥
तिमिर - पुंज के अग्रदूत थे घूमते ।
दिशा - वधूटी के व्याकुल - हग सामने ।।२।।