पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/१८

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और व्यापारों का वर्णन नहीं मिलेगा। मनुष्य अल्पज्ञ है, उसकी बुद्धि और प्रतिभा ही क्या? उसका विवेक ही क्या? उसकी सूझ ही कितनी, फिर मुझ ऐसे विद्या-विहीन और अल्पमति की। अतएव प्रार्थना है कि मेरी भ्रान्तियों और दोषों पर दृष्टिपात न कर विद्वज्जन अथच महज्जन गुण-ग्रहण की ही चेष्टा करेंगे। यदि कोई उचित सम्मति दी जाएगी तो वह शिरसाधार्य्य होगी।

कवि-कर्म्म

कवि-कर्म्म कठिन है, उसमें पग-पग पर जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। पहले तो छन्द की गति स्वच्छन्द बनने नहीं देती, दूसरे मात्रओं और वर्णों की समस्या भी दुरूहतारहित नहीं होती। यदि कोमल-पद-विन्यास की कामना चिन्तित करती रहती है, तो प्रसाद-गुण की विभूति भी अल्प वांछित नहीं होती। अनुप्रास का कामुक कौन नहीं, अन्त्यानुप्रास के झमेले तो कितने शब्दों का अंग भंग तक कर देते हैं या उनके पीछे एक पूँछ लगा देते हैं। सुन्दर और उपयुक्त शब्द-योजना कविता की विशेष विभूति है, इसके लिए कवि को अधिक सावधान रहना पड़ता है, क्योंकि कविता को वास्तविक कविता वही बनाती है। कभी-कभी तो एक उपयुक्त और सुन्दर शब्द के लिए कविता का प्रवाह घंटो रुक जाता है। फ़ारसी का एक शायर कहता है—