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नवम सर्ग

सहायता उनके सद्भाव - समूह की।
सदा करेगी तपोभूमि - शुचि - भावना ।।
उन्हे सँभालेगी मुनि की महनीयता ।
कुल - दीपक संतान - प्रसव - प्रस्तावना । ७६।।

इसी लिये मुझको अशान्ति में शान्ति है।
और विरह मे भी हूँ वहुत व्यथित न मैं ।।
चिन्तित हूँ पर अतिशय - चिन्तित हूँ नही।
इसीलिये वनता हूँ विचलित - चित न मैं ॥७७।।

किन्तु जनकजा के अभाव की पूर्तियाँ ।
हमें तुम्हें भ्राताओं भ्रातृ - वधू सहित ।।
करना होगा जिससे माताये तथा ।
परिजन, पुरजन, यथा रीति होवे सुखित ।।७८।।

तात ! करो यह यत्न दलित दुख - दल बने ।
सरस - शान्ति की धारा घर घर में बहे ।।
कोई कभी असुख - मुख अवलोके नही।
सुखमय - वासर से विलसित वसुधा रहे ॥७९।।

दोहा

सीता का सन्देश कह, सुन आदर्श पवित्र ।
वन्दन कर प्रभु - कमल - पग चले गये सौमित्र ।।८०॥