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प्रकृति का नीलाम्बर उतरे ।
श्वेत - साड़ी उसने पाई ।।
हटा घन - घूघट शरदाभा।
विहँसती महि में थी आई ॥१॥
मलिनता दूर हुए तन की।
दिशा थी बनी विकच - वदना ।।
अधर में मंजु - नीलिमामय ।
था गगन - नवल - वितान तना ॥२॥
प्रकृति का नीलाम्बर उतरे ।
श्वेत - साड़ी उसने पाई ।।
हटा घन - घूघट शरदाभा।
विहँसती महि में थी आई ॥१॥
मलिनता दूर हुए तन की।
दिशा थी बनी विकच - वदना ।।
अधर में मंजु - नीलिमामय ।
था गगन - नवल - वितान तना ॥२॥