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पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/१८२

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दशम सर्ग
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तपस्विनी आश्रम
चौपदे

प्रकृति का नीलाम्बर उतरे ।
श्वेत - साड़ी उसने पाई ।।
हटा घन - घूघट शरदाभा।
विहँसती महि में थी आई ॥१॥

मलिनता दूर हुए तन की।
दिशा थी बनी विकच - वदना ।।
अधर में मंजु - नीलिमामय ।
था गगन - नवल - वितान तना ॥२॥