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वैदेही-वनवास

हो प्रभाव - शालिनी कहाती ,
प्रभा भरित दिखलाती हो।
तमस्विनी का भी तम हरकर,
उसको दिव्य वनाती . हो ॥६८॥

मेरी तिमिरावृता न्यूनता का
निरसन त्योंही कर दो।
अपनी पावन ज्योति कृपा -
दिखला, मम जीवन में भर दो ॥६९॥

कोमलता की मूर्ति सिते हो,
हितेरता कहलाओगी।
आशा है आई हो तो तुम ,
उर में सुधा बहाओगी ||७०॥

अधिक क्या कहूँ अति-दुर्लभ है ,
तुम जैसी ही हो जाना।
किन्तु चाहती हूँ जी से तव -
सद्भावों को अपनाना ॥७१॥

जो सहायता कर सकती हो
करो, प्रार्थना है इतनी ।
जिससे उतनी सुखी बन सकूँ ,
पहले सुखित रही जितनी ॥७२॥