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एकादश सर्ग
सारे - पशु बहु - पुलकित थे।
तृण - चय की देख प्रचुरता ॥
अवलोक सजल - नाना - थल।
बन - अवनी अमित - रुचिरता ॥२४॥
सावन - शीला थी हो हो।
आवर्त - जाल आवरिता ॥
थी बड़े वेग से बहती।
रस से भरिता वन - सरिता ॥२५॥
बहुशः सोते वह बह कर ।
कल कल रख रहे सुनाते ॥
सर भर कर विपुल सलिल से।
थे सागर बने दिखाते ॥२६॥
उस पर वन - हरियाली ने। '
था अपना झूला डाला ।।
तृण - राजि विराज रही थी।
अहने मुक्तावलि - माला ॥२७॥
पावस से . प्रतिपालित हो।
वसुधानुराग प्रिय - पय पी॥
रख हरियाली मुख - लाली ।
बहु - तपी दूव थी पनपी ॥२८॥