पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/२१३

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क्या वैसी ही सुखिता है।
महि की सर्वोत्तम थाती॥
क्या अवधपुरी वैसी ही।
है दिव्य बनी दिखलाती॥५९॥

मिट गई राज्य की हलचल।
या है वह अब भी फैली॥
कल-कीर्त्ति सिता सी अब तक।
क्या की जाती है मैली ॥६०॥

बोले रिपुसूदन आर्य्ये।
हैं धीर धुरंधर प्रभुवर॥
नीतिज्ञ, न्यायरत, संयत।
लोकाराधन में तत्पर॥६१॥

गुरु-भार उन्ही पर सारे-
साम्राज्य-संयमन का है।
तन मन से भव-हित-साधन।
व्रत उनके जीवन का है॥६२॥

इस दुर्गम-तम कृति-पथ में।
थी आप संगिनी ऐसी॥
वैसी तुरन्त थीं बनती।
प्रियतम-प्रवृत्ति हो जैसी॥६३॥