सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/२१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७३
एकादश सर्ग

आश्रम - निवास ही इसका।
सर्वोत्तम - उदाहरण है।
यह है अनुरक्ति - अलौकिक ।
भव - वन्दित सदाचरण है॥६४॥

यदि रघुकुल - तिलक पुरुप हैं।
श्रीमती शक्ति हैं उनकी॥
जो प्रभुवर त्रिभुवन - पति है।
तो आप भक्ति हैं उनकी ॥६५॥
.
विश्रान्ति सामने आती।
तो बिरामदा थी बनती॥
अनहित - आतप - अवलोके ।
हित - वर - वितान थी तनती ॥६६॥

थी पूर्ति न्यूनताओं की।
मति - अवगति थी कहलाती ।।
आपही विपत्ति विलोके ।
थी परम - शान्ति बन पाती ॥६७॥

अतएव आप ही सोचे ।
वे कितने होंगे विह्वल ॥
पर धीर - धुरंधरता का।
नृपवर को है सच्चा - बल ॥६८