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शान्ति - निकेतन के समीप ही सामने।
जो देवालय था सुरपुर सा दिव्यतम ॥
आज सुसज्जित हो वह सुमन - समूह से ।
बना हुआ है परम-कान्त ऋतुकान्त-सम ।।१।।
ब्रह्मचारियों का दल उसमें बैठकर ।
मधुर - कंठ से वेद - ध्वनि है कर रहा ।
तपस्विनी सव दिव्य - गान गा रही हैं।
जन - जन - मानस में विनोद है भर रहा ॥२॥