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द्वादश सर्ग

एक कुशासन पर कुलपति हैं राजते।
सुतों के सहित पास लसी हैं महिसुता ।।
तपस्विनी - आश्रम - अधीश्वरी सजग रह ।
वन वन पुलकित है बहु - आयोजन - रता ॥३॥

नामकरण - संस्कार क्रिया जब हो चुकी।
मुनिवर ने यह सादर महिजा से कहा।
पुत्रि जनकजे उन्हें प्राप्त वह हो गया।
रविकुल - रवि का चिरवांछित जो फल रहा ॥४॥

कोख आपकी वह लोकोत्तर - खानि है।
जिसने कुल को लाल अलौकिक दो दिये॥
वे होंगे आलोक तम - बलित - पंथ के ।
कुश - लव होंगे काल कश्मलों के लिये ॥५॥

सकुशल उनका जन्म तपोवन में हुआ।
आशा है संस्कार सभी होंगे यही॥
सकल - कलाओ - विद्याओं से हो कलित ।
विरहित होंगे वे अपूर्व - गुण से नहीं ॥६॥

रिपुसूदन जिस दिवस पधारे थे यहाँ।
उसी दिवस उनके सुप्रसव ने लोक को।
दी थी मंगलमय यह मंजुल - सूचना ।
मधुर करेगे वे अमधुर - मधु - ओक को॥७॥