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पृष्ठ:वैदेही-वनवास.djvu/२८१

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नदेही-नास

क्यों न दूर हो जायेगी मन मलिनता ।
क्यों न निकल जायेगी कुल जी की कसर ।।
क्यों न गांठ खुल जायेगी जी मे पड़ी।
पड़े अगर दम्पति का दम्पति पर असर ॥१२४॥

जिन दोनों का मबसे प्रिय - सम्बन्ध है।
जो दोनों है. एक दुमरे से मिले।
एक वृन्त के दो अति सुन्दर.- सुमन - सम ।
एक रंग में रंग जो दोनों हैं खिले ॥१५॥

ऐसा प्रिय - सम्बन्ध अल्प - अन्तर हुए।
भ्रंम - प्रमाद मे पड़े टूट पाता नहीं।
स्नेहकरों से जो बंधन है बॅधा, वह -
खांच - तान कुछ हुए छूट जाता नहीं ॥१२६॥

किन्तु रोग इन्द्रिय - लोलुपता का बढ़े।
पड़े आत्मसुख के प्रपच में अधिकतर ।।
होती है पशुता - प्रवृत्ति की प्रबलता।
जाती है उर मे भौतिकता - भूति भर ॥१२७॥

लंका में भौतिकता का साम्राज्य था।
था विवाह का बंधन, किन्तु अग्रीतिकर ॥
नित्य वहाँ होता स्वच्छंद - विहार था।
था विलासिता नग्न - नृत्य ही रुचिर तर ॥१२८॥