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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/१०६

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"और मल्लिका, हम अपने मित्र के अतिथि होने जा रहे हैं।"

"प्रिय, यह असाधारण सौभाग्य है, परन्तु महाक्षत्रप, महाराज को क्या इनकी स्मृति है? इनका कहना है—महाराज दस वर्ष साथ पढ़े हैं तक्षशिला में।"

"महाराज भी यही कहते हैं देवी, वे कहते हैं—बन्धुल-सा एक मित्र कहीं मिले तो जीवन का सूखापन ही दूर हो जाए।"

"ऐसा कहते हैं? तब तो महाक्षत्रप, महाराज को मित्र का बहुत ध्यान है।"

"किन्तु मल्लिका देवी, तुम्हारे पति क्या ऐसे-वैसे हैं? मैंने अवन्तिका में गुरुपद से सुना था कि राजनीति और रणनीति में बन्धुल का कोई प्रतिस्पर्धी नहीं है।"

"और जल में तैरने में महाक्षत्रप?"

"आज देखा हमने प्रतिस्पर्धी, देवी मल्लिका को।"

महाक्षत्रप हंस दिए। मल्लिका भी हंस दी। बन्धुल ने कहा—"यहीं हमारे अश्व हैं।"

"वे पहुंच जाएंगे मित्र, नौका हमें क्रीड़ोद्यान के नीचे पहुंचा देगी।"

इसके बाद क्षत्रप ने एक दास को अश्व ले आने के लिए भेज दिया। उन्होंने मल्लिका को सम्बोधन करके कहा—"वह मेरे उद्यान का घाट दीख रहा है देवी मल्लिका!"

"देख रही हूं महाक्षत्रप; अभी हमें आए कुछ क्षण ही बीते हैं, पर ऐसा दीख रहा है, जैसे घर ही में हों।"

"घर ही में तो हो देवी मल्लिका, हम आ गए मित्र, उतरो तुम और क्षण भर ठहरो, तब तक मैं आवश्यक व्यवस्था कर दूं।"