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खोलकर अपने और अपने मालिकों के अधिकारों का डंका पीटा है।"
"तो मित्र, मैं तुझे पाकर बहुत सुखी हुआ।"
"परन्तु राजपुत्र, कदाचित् मेरा कोसल में रहना नहीं होगा।"
"यह क्यों मित्र?"
"मेरे वाजीकरण की विफलता से महाराज बहुत असन्तुष्ट हुए हैं। मैंने उनसे राजगृह जाने की अनुमति ले ली है। मैं शीघ्र ही राजगृह जाना चाहता हूं।"
"नहीं-नहीं, अभी नहीं मित्र! जब मैं कहूं, तब जाना। अभी कोसल में रहने का मैं तुम्हें निमन्त्रण देता हूं।"
"तो फिर राजपुत्र की जैसी इच्छा!"