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करूंगा, किन्तु तुम?"
"मेरे लिए बहुत व्यवस्था है भन्ते, इस पात्र में दूध है और सूखा हुआ कौशेय प्रावार और कौजव खूंटी पर है।"
"ठीक है आयुष्मन्, किन्तु तुम्हारा नाम क्या है?"
"माधव, भन्ते, किन्तु गुरुपद मुझे मधु कहते हैं।"
"तो मैं भी यही कहूंगा। मधु आयुष्मन्, अब मैं भी विश्राम करूंगा।"
"क्या भगवत्पाद में निवेदन करना होगा?"
"नहीं-नहीं, प्रभात में देखा जाएगा।"
बटुक क्षणभर कुछ सोचकर चला गया। वह सोच रहा था, यह अधिकारपूर्ण स्वर से बात करनेवाला तेजस्वी अतिथि कौन है? और वह असाधारण महिला? आज दो-दो महार्घ अतिथि मठ में आए हैं, परन्तु गुरुपद ने तो एक ही का संकेत किया था। वह संकेत किसके प्रति था?
बहुत देर तक बटुक विचार करता रहा। फिर वह अलिन्द के एक स्तम्भ का ढासना लगाकर सो गया।