43. गर्भ-गृह में
गर्भगृह में माधव ब्रह्मचारी के साथ हठात् अम्बपाली को आते देख भगवान् वादरायण व्यास ने आश्चर्यमुद्रा से कहा—
"अरे देवी अम्बपाली!"
माधव ब्रह्मचारी ने ज्योंही वह अतिश्रुत नाम सुना, वह अचकचाकर अम्बपाली की ओर ताकता रह गया।
अम्बपाली ने पृथ्वी पर गिरकर प्रणिपात किया। भगवान् वादरायण ने स्वस्ति कहकर कहा—"तुम्हारा कल्याण हो, जनपदकल्याणी अम्बपाली कहो, तुम्हारा यह अकस्मात् आगमन क्यों?"
"अविनय क्षमा हो, मैं प्रथम से बिना ही आदेश पाए चली आई। किन्तु सर्वदर्शी भगवत्पाद ने इस अकिञ्चन के विश्राम-आतिथ्य की जो असाधारण व्यवस्था की, उससे मैं अति कृतार्थ हुई।"
"किन्तु-किन्तु!..." भगवान् वादरायण ने तरुण बटुक की ओर प्रश्न-सूचक दृष्टि से देखा।
ब्रह्मचारी ने अटकते हुए कहा—"भगवत्पाद का आदेश यथाशक्ति पालन किया गया है।"
"क्या रात्रि में और कोई अतिथि नहीं आए?"
माधव ने सावधान मुद्रा से कहा—"एक राजवर्गी सामन्त भी हैं।" इसी समय एक छाया ने गर्भगृह में प्रवेश किया। उसे देखकर भगवान् वादरायण कुछ असंयत हुए! उन्होंने दोनों हाथ उठाकर कहा—
"मगध-सम्राट की जय हो!"
तब तक मगध-सम्राट का मस्तक भगवान् वादरायण के चरणों में झुक गया।
सम्राट का नाम सुनते ही माधव स्तम्भित हो गया। वह अपनी अविनय पर विचार करने लगा। भगवत्पाद के संकेत से उसने आसन की व्यवस्था की।
स्वस्थ होकर बैठने के बाद सम्राट ने हंसकर कहा—"भगवत्पाद का आशीर्वाद विलम्ब से मिला। प्रसेनजित् ने मुझे करारी हार दी है, अभियान के समय मैं भगवत्पाद के दर्शन नहीं कर सका। वार्षभि विदूडभ ने मुझे डुबोया। उसी ने लिखा था कि श्रावस्ती पर अभियान का यही समय है, बूढ़े कामुक महाराज प्रसेनजित् अब कुछ न कर सकेंगे, वे कौशाम्बीपति उदयन से उलझे हुए हैं और सेनापति कारायण से मिलकर मैं सम्पूर्ण सेना में विद्रोह कर दूंगा।"
"और सम्राट् उसी के बल पर श्रावस्ती पर चढ़ दौड़े!" भगवान् वादरायण ने मन्द स्मित करके कहा। सम्राट ने लज्जा से सिर झुका लिया। भगवान् वादरायण फिर बोले—