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"नहीं राजनन्दिनी, पहले आप और कुण्डनी आहार कर लें, पीछे हम लोग खाएंगे।"
"नहीं-नहीं, ऐसा नहीं।"
"दास का निवेदन है..."
"दास नहीं, भद्र, अभिभावक कहो।"
राजनन्दिनी का गला भर आया। उन्होंने फिर उन्हीं भारी-भारी पलकों को उठाकर सोम की ओर गीली आंखों से ताका। उस मूक अनुरोध से वशीभूत होकर सोम ने और आग्रह नहीं किया। उन्होंने कहा—
"तो फिर, राजनन्दिनी की जैसी आज्ञा हो, हम लोग साथ ही बैठकर भोजन करें।"
राजकुमारी ने भी जल्दी-जल्दी कुण्डनी और अपने लिए आहार परोसा। शंब को भी दिया, पर शंब किसी तरह साथ खाने को राजी न हुआ। वे तीनों भोजन करने लगे।