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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२३२

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नीच जाति की सुन्दरी कन्याएं दासी की भांति मोल ली और बेची जा सकती हैं, परन्तु उन्हें विवाहित पत्नी के अधिकार नहीं प्राप्त होंगे।"

आपस्तम्ब-"आप ठीक कहते हैं ब्रह्मन्, दक्षिणापथ में इसी प्रकार राक्षसकुल तथा दानव और दैत्यकुल हैं, जो राक्षसकुल से भी उन्नत और आर्य-सभ्यतागृहीत हैं। वे अपनी कुल-मर्यादा नहीं छोड़ सकते। आप जानते हैं, वे दीन नहीं हैं; आर्यों के श्रेष्ठ कुलों में तथा देव-कुल में भी उनके विवाह सम्बन्ध हो चुके हैं। दैत्य-मानव-युद्ध जो होते हैं, वे जातीय हैं, धार्मिक नहीं। वे यज्ञ भी करते हैं। प्रह्लाद और बलि के दान और यज्ञ भुलाए नहीं जा सकते। पुलोमा दैत्य की पुत्री शची इन्द्र की पत्नी थी ही। उसकी कन्या जयन्ती का विवाह शुक्राचार्य और फिर ऋषभदेव से हुआ था। मधु दैत्य की कन्या मधुमती सूर्यवंशी हर्यश्व को ब्याही थी और वृषपर्वा दैत्य की कन्या को ययाति ने पत्नी बनाया था। बाण दैत्य की कन्या का विवाह अनिरुद्ध से हुआ था तथा वज्रनाभि के कुटुम्ब की तीन कन्याएं यादवों में आई हैं। इसलिए मेरी यह मर्यादा स्वीकार करने योग्य है कि 'राक्षस' और 'असुर' विवाह आर्यपरिपाटी में स्वीकृत कर लिए जाएं, जिससे इन जातियों की कन्याओं के अधिकारों का हनन न हो। परन्तु उत्तम विवाह प्रथम तीन के ही हैं।"

गौतम ने कहा-"मेरी मर्यादा है कि इन छः प्रकारों में 'प्राजापत्य' और 'पिशाच' दो प्रकार और बढ़ा दिए जाएं। प्राजापत्य विवाह वह है, जिसमें पिता कन्या को यह कह कर दे कि तुम दोनों मिलकर नियमों का पालन करो। यह उत्तरापथ के शिष्ट गणसंघ शासितों की मर्यादा है। पिशाच विवाह मैं उसे कहता हूं, जहां मूर्छिता, रोती-कलपती कन्या का बलात् हरण किया जाए।"

वसिष्ठ ने कहा-"किन्तु यह विवाह नहीं है।"

गौतम ने कहा-"यह मर्यादा काम्बोजों में विहित है। नन्दिनगर का काम्बोज संघ भी आर्यों के संघ में मिल चुका है। आप जानते हैं कि उत्तरापथ में काम्बोज की सीमाएं गान्धार से मिली हुई हैं। उनके रीति-रिवाज जंगली तो हैं ही, परंतु उन्हें हमें आर्यों के संघ में लाना है।"

बोधायन ने कहा-"यह मर्यादा मुझे मान्य है।"

गौतम-"तो एक ही गोत्र और प्रवर के स्त्री-पुरुष विवाह न करें। वे ही विवाह करें, जो माता की चार पीढ़ियों और पिता की छः पीढ़ियों में न हों।"

आपस्तम्ब-"नहीं, नहीं, माता-पिता दोनों ही की छः-छः पीढ़ियों में न हों। गोत्र के निषेध को मैं स्वीकार करता हूं, परंतु प्रवर का बंधन नहीं।"

"मेरी मर्यादा है कि चाची या मामा की लड़की से विवाह किया जा सकता है।"

गौतम-"मैं उत्तरापथ में यह मर्यादा कदापि स्थापित न होने दूंगा। दूसरे मैं संकर की समस्या पर भी विचार उपस्थित करता हूं। इस समय आर्यों के तीन वर्ण हैं, एक ब्राह्मण पुरोहित, दूसरा क्षत्रिय, तीसरा जनपद अर्थात् विश। इनके सिवा अनार्य, दस्यु, दास, राक्षस, दैत्य और दानव-कुल भी हैं। आप जानते हैं कि प्रारम्भ में सभी आर्य खेती और पशुपालन करते थे। पीछे उनमें राजन्य हुए हैं, जो आज क्षत्रिय राजा हैं। वे शासन-व्यवस्था करते हैं। दूसरे ब्राह्मण पुरोहित हुए जो यज्ञ के अधिकारी हैं तथा धर्म-मर्यादा स्थापित करते हैं। इनके बाद जो जन बचे वे विश थे। वे ही आर्यों के पुराने कार्य कृषि और पशु-