पालन करते आए थे। परन्तु हमारे राज्य-वैभव-विस्तार और चहुंमुखी सभ्यता के विस्तार के कारण वे भी केवल वाणिज्य करने लगे। अतः आर्यों का प्राचीन धंधा पशुपालन और कृषि, उनसे निकृष्ट शूद्रों को करना पड़ रहा है। परन्तु उनमें जो इन कार्यों से सम्पन्न हो गए हैं वे सेवा नहीं करते, सेवाकार्य का दायित्व क्रीत दासों के सुपुर्द हो गया है।"
आपस्तम्ब-"मित्र गौतम का अभिप्राय क्या है?"
गौतम–"बड़ा जटिल मित्र! वही मैं कहता हूं। आर्यों की पुरानी मर्यादा के अनुसार उच्च वर्ग का पुरुष अपने से नीचे वर्ण की स्त्री से विवाह कर सकता है। इससे ब्राह्मण को चारों वर्णों की स्त्रियां ब्याहने का अधिकार है। क्षत्रियों को तीन की, पर वैश्यों को दो ही की। फिर उन्हें कृषि, वाणिज्य और शिल्प के लिए दासों, शूद्रों और कर्मकारों से घनिष्ठ रहना पड़ता है। नियम से भी उन्हें अपने सिवा शूद्रा स्त्री ही मिल सकती है। इससे उनके रक्त में शूद्रों और अनार्य दासों का रक्त बहुत अधिक मिश्रित हो गया है, जिससे समाज में बहुत गड़बड़ी और अशुद्धि उत्पन्न हो गई है। नियमानुसार ऐसे विवाह की सन्तान पिता की जाति की मानी जाती है। इस मिश्रण से वैश्यों का रंग भी बदल गया है और उनका बुद्धिविकास भी कम हो गया है। संकर जनपद में जो सेट्ठिजन हैं उन्हें छोड़कर सर्वत्र ही विशकुल हीन हो गया है। अतः मैं आर्यों में संकर भाव को बंद करता हूं। मैं यह मर्यादा स्थापित करता हूं कि अपने ही वर्ण की स्त्री की सन्तान पिता के वर्ण को प्राप्त हो, वही सम्पत्ति में भागी हो।"
वसिष्ठ-"परन्तु यह प्राचीन मर्यादा है कि ब्राह्मण तीनों वर्गों की स्त्री से ब्राह्मण सन्तान पैदा कर सकता है। यह सत्य नहीं है कि संकर सन्तान हीनगुण होती है। मत्स्यगन्धा में पराशर ऋषि के औरस से व्यास का जन्म हुआ जो विद्या-बुद्धि में अपने पिता से भी बढ़-चढ़कर हुए। उनकी योग्यता का व्यक्ति उस युग के ब्राह्मणों में भी कोई न था।"
गौतम-"इतना होने पर भी उन पर 'न देवचरितं चरेत्' का नियम लगा दिया गया था और उन्हें ब्राह्मण नहीं माना गया था और यह स्पष्ट कर दिया गया कि ब्राह्मण शूद्रों में सन्तान न उत्पन्न करें; करें तो वे ब्राह्मण नहीं।"
वसिष्ठ-"ब्राह्मण नहीं तो कौन? वे शूद्र भी नहीं?"
गौतम-"मैं उसे 'पारशव' घोषित करता हूं और उसकी मर्यादा स्थापित करता हूं कि वह अपने कुल की सेवा करे।"
वसिष्ठ-"तब क्षत्रिय भी शूद्रों में जो सन्तान उत्पन्न करें, वह क्षत्रिय नहीं। उसे मैं 'उग्र' घोषित करता हूं। उसकी पृथक् जाति हो, परन्तु वैश्य पिता की शूद्रा में सन्तान वैश्य ही रहे। किन्तु वैश्या माता और ब्राह्मण पिता की सन्तान ब्राह्मण नहीं, मैं उसे 'अम्बट' घोषित करता हूं। यही उसकी जाति हो।"
अब शौनक ने उठकर कहा-"तो हम सब ऐसी मर्यादा स्थापित करते हैं कि सवर्ण विवाह की सन्तान ही सवर्ण है। प्रतिलोम की भांति अनुलोम सन्तान भी आज से संकर हुई, तथा वह आर्यों से बहिर्गत हुई।"
सांख्यायन श्रोत्रिय ने कहा-"ऐसा ही हो–नहीं तो आर्य-कुल का नाश हो जाएगा। क्या आप देखते नहीं कि आर्यों के सब राज्य, शिल्प, वाणिज्य संकरों ने अपना लिए हैं?"