पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२५

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2. गण-सन्निपात

जब तक रथ की घण्टियों का घोष सुनाई देता रहा और रथ की ध्वजा दीख पड़ती रही, वैशाली का जनपद मार्ग पर उसी ओर मन्त्र-विमोहित-सा देखता रह गया। अम्बपाली का वह अपूर्व रूप ही नहीं, उसका तेज, दर्प, साहस और दृढ़ता सब कुछ उन्हें अकल्पित दीख पड़ी। जो थोड़े-से वाक्य अम्बपाली ने सभा में कहे, उनका सभी पर भारी प्रभाव पड़ा। कुछ लोग निरीह नारीत्व की इस कानूनी लांछना के विरोधी हो गए। उन्होंने चिल्ला-चिल्लाकर कहना आरम्भ किया कि—"कौन देवी अम्बपाली को बलात् 'नगरवधू' बनाएगा? हम उसके रक्त से वसुन्धरा को डुबो देंगे। निस्सन्देह यह धिक्कृत कानून वैशाली जनपद और वज्जी संघ शासन का कलंक रूप है। यह स्वाधीन जनपद के अन्तस्तल पर पराधीनता की कालिमा है। अंग, बंग, कलिंग, चम्पा, काशी, कोसल, ताम्रपर्णी और राजगृह कहीं भी तो स्त्रीत्व का ऐसा बलात् अपहरण नहीं है। फिर वज्जियों का यह गणतन्त्र ही क्या, जहां नारी के नारीत्व का इस प्रकार अपहरण हो? यह हमारी रक्षणीया कुलवधुओं, पुत्रियों और बहिनों की प्रतिष्ठा और मर्यादा का घोर अपमान है। इसे हम सहन नहीं करेंगे। हम विद्रोह करेंगे—समाज से, संघ से, अष्ट-कुल के गणतन्त्र से और गण-परिषद् से!"

कुछ सामन्तों ने अपने-अपने खड्ग कोष से खींच लिए। चलती बार अम्बपाली जो शब्द कह गई थी, उससे उनके हृदय तीर से विद्ध पक्षी की भांति आहत हो गए थे। उन्होंने क्रूर स्वर में हथियार ऊंचे उठाकर कहा—"अरे, वैशाली की जनपद-कल्याणी देवी अम्बपाली-नीलपद्म-प्रासाद में परिषद् के वधिकों की प्रतीक्षा कर रही हैं। कौन उन्हें वध करने के लिए वधिकों को भेजता है, हम देखेंगे! हम अभी-अभी उसके खण्ड-खण्ड कर डालेंगे। हम इस संथागार का एक-एक पत्थर धूल में मिला देंगे।"

कुछ सेट्ठिपुत्र पागलों की भांति बक रहे थे—"वज्जियों के इस गणतन्त्र का नाश हो! हम राजगृह में जा बसेंगे। देवी अम्बपाली जिएं। हमारे धन और प्राण देवी अम्बपाली पर उत्सर्ग हैं।"

इस पर सबने उच्च स्वर में जयघोष किया—"जय, देवी अम्बपाली की जय! जनपदकल्याणी को अभय!"

परन्तु बहुत-से उद्धत तरुण सामन्तपुत्र शस्त्र चमका-चमकाकर और हवा में भाले उछाल-उछालकर अपने अश्व दौड़ाने लगे। वे कह रहे थे कि—"उसका वध वधिक नहीं कर सकते। हम उसके दिव्य देह का उपयोग चाहते हैं। हम उसकी शरच्चन्द्र की चांदनी के समान रूप-सुधा का पान किया चाहते हैं। उनके अनिंद्य यौवन का आनन्द लिया चाहते हैं। वह हमारी है, हम सबकी है। वह वैशाली का प्राण, वैशाली की शोभा, वैशाली के जीवन की केन्द्रस्थली है। वह वैशाली की नगरवधू है। उसकी वे शर्तें कुछ भी हों, हमें स्वीकार हैं। हम