सर्वस्व देकर भी उसे प्राप्त करेंगे या स्वयं मर मिटेंगे!"
प्रतिहार और दण्डधर परिषद् की व्यवस्था-स्थापना में असमर्थ हो गए। तब गणपति सुनन्द ने खड़े होकर कहा—"आयुष्मान्! शान्त होकर देवी अम्बपाली की शर्तों को सुनें। उन पर अभी गण-सन्निपात का छन्द ग्रहण होगा। उन शर्तों की पूर्ति होने पर देवी अम्बपाली स्वेच्छा से नगरवधू होने को तैयार हैं।"
एक बार संथागार में फिर सन्नाटा छा गया। परन्तु क्षण-भर बाद ही बहुत-से कण्ठ एक साथ चिल्ला उठे––"कहिए, भन्ते गणपति! वे शर्तें क्या हैं और कैसे उनकी पूर्ति की जा सकती है?"
गणपति ने कहा—"सब आयुष्मान् और भन्तेगण सुनें! देवी की पहली शर्त यह है कि उसे रहने के लिए सप्तभूमि प्रासाद, नौ कोटि स्वर्णभार, प्रासाद के समस्त साधन और वैभव सहित दिया जाए।"
गण-सदस्य जड़ हो गए। नागरिक भी विचलित हुए। बहुत-से राजवर्गियों की भृकुटियों में बल पड़ गए। महामात्य सुप्रिय ने क्रुद्ध होकर कहा-"भन्ते, यह असम्भव है, ऐसा कभी नहीं हुआ। सप्तभूमि प्रासाद जम्बूद्वीप भर में अद्वितीय है, उसका वैभव और साधन एक राजतन्त्र को संचालन करने योग्य है। उसका सौष्ठव ताम्रलिप्ति, राजगृह, श्रावस्ती और चम्पा के राजमहलों से बढ़-चढ़कर है। फिर नौ कोटि स्वर्णभार? नहीं, नहीं। नौ कोटि स्वर्णभार देने पर वज्जी संघ का राजकोष ही खाली हो जाएगा। नहीं, नहीं; यह शर्त स्वीकार नहीं की जा सकती। किसी भांति भी नहीं, किसी भांति भी नहीं!" उद्वेग से उनका वृद्ध शरीर कांपने लगा और वे हांफते-हांफते बैठ गए।"
बहुत-से सेट्ठिपुत्र एक साथ ही बोल उठे—"क्यों नहीं दिया जा सकता? राजकोष यदि रिक्त हो जाएगा तो हम उसे भर देंगे। अष्टकुल दूसरे प्रासाद का निर्माण कर सकता है। हम शत कोटि स्वर्णभार भी देने को प्रस्तुत हैं!"
सामन्तपुत्रों ने अपने-अपने भाले चमका-चमकाकर कहा—"देवी अम्बापाली को सप्तभूमि प्रासाद सम्पूर्ण साधना और वैभव तथा नौ कोटि स्वर्णभार सहित दे दिया जाए। वह प्रासाद, वह वैभव वैशाली के जनपद का है, वह हमारा है, हम सबका है, हमने गर्म रक्त के मूल्य पर उसका निर्माण कराया है। जिस प्रकार अनुपम रूप-यौवन-श्री की अधिष्ठात्री देवी अम्बपाली हमारी-हम सबकी है, उसी प्रकार अप्रतिम वैभव और सौष्ठव का आगार सप्तभूमि प्रासाद भी हमारा, हम सबका है। वह अवश्य वैशाली के जनपद का साध्य क्रीड़ास्थल होना चाहिए।"
गणपति ने खड़े होकर हाथ के इशारे से सबको चुप रहने को कहा। फिर कहा—"भन्तेगण, अब मैं आपसे पूछता हूं कि क्या आपको देवी अम्बपाली की पहली शर्त स्वीकार है? यदि किसी को आपत्ति हो तो बोलें।" सभा-भवन में सब चुप थे। गणपति ने कहा—"सब चुप हैं। मैं फिर दूसरी बार पूछता हूं और अब तीसरी बार भी! सब चुप हैं। तो भन्ते, वज्जियों का यह सन्निपात देवी अम्बपाली की पहली शर्त स्वीकार करता है।"
सभा के बाहर-भीतर हर्ष की लहर दौड़ गई। एक बार फिर देवी अम्बपाली के जयनाद से संथागार गूंज उठा।
गणपति ने कुछ ठहरकर कहा––"भन्ते, अब देवी की शेष दो शर्तें भी सुनिए। उसकी