पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२६३

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उरोजों पर कसी स्वर्णकंचुकी को , कोई उसके नवविकसित यौवन को प्यासी चितवनों से देखने लगा। उनके जे ? ने कुण्डनी को प्रसन्न करने के लिए कहा " आर्ये, हुआ क्या ? " कुण्डनी ने उसकी ओर एक कटाक्षपात करके कहा “ पाजी ने महिषी की अन्तर्वासिनी दासी को उड़ाया है। इसे आज सूली चढ़वाऊंगी। " “ किन्तु यह असत्य है , असत्य ! " एक प्रहरी ने कहा - “ इसका प्रमाण क्या है ? " कुण्डनी ने क्रुद्ध होकर कहा - “ अरे मोघपुरुष , प्रमाण क्या तुझे ही बताना पड़ेगा ? तू भी इसका साथी है, देवी से निवेदन करना होगा। " " नहीं - नहीं, अज्जे , मुझसे इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। " सब प्रहरी हंसने लगे । एक ने कुण्डनी की कृपा - दृष्टि प्राप्त करने की इच्छा से कहा - “ अज्जे , इसे पकड़ा कहां ? " कुण्डनी ने उस पर एक कटाक्ष फेंका और मुस्कराकर कहा - “ पकड़ा क्या यों ही , तीन पहर से घूम रही हूं। देवी की आज्ञा है, जहां मिले , उपस्थित कर । " इसी समय सोम ने आकर कहा - “ चलो ! ” प्रहरियों ने बाधा नहीं दी ; कुण्डनी प्रहरी - सहित अन्तःपुर की पौर में घुस गई । सोम ने कुण्डनी के कान में कहा - “ अब ? " _ “ अब इसे यहां से भगाना होगा , नहीं तो यह थोड़ी ही देर में भीड़ इकट्ठी कर लेगा । तुम उसे जाकर युक्ति से भगाओ, मैं तब तक उस लता -मण्डप में हूं । " कुण्डनी आगे बढ़ गई । सोम ने सिपाही के पास आकर कहा “प्राण बचाना चाहता है ? " " हला , मैं चोर नहीं हूं। " " तो ला , कुछ मुझे दे, तुझे छोड़ती हूं। " " मेरे पास केवल चार कार्षापण हैं । " " वही दे मोघपुरुष और भाग। तब तक मैं दूसरी ओर देख रही हूं । परन्तु याद रख , मेरी संगिनी की दृष्टि में पड़ा और मरा। वह तुझ पर क्रुद्ध है। दो - चार दिन अन्तर्धान रह। " ___ " ऐसा ही सही हला, तुम्हारा कल्याण हो । " वह कार्षापण दे बाहर को भागा । सोम ने लम्बे- लम्बे डग भरते हुए लतामण्डप के निकट पहुंचकर कुण्डनी से कहा - “पाप कट गया , चार कार्षापण उत्कोच में मिले । ” “ परन्तु सोम , तुम्हारी चाल दूषित है । स्त्रियां इस भांति नहीं चलतीं । " सोम ने हंसकर कहा - “ अब मैं एक दिन में सम्पूर्ण स्त्री नहीं बन सकता हूं। परन्तु राजकुमारी कहां है ? " ___ “मैं जानती हूं । वहां पहुंचने के लिए पूरा जन - कोलाहल पार करना होना । उधर नये हर्म्य में जाना होगा । परन्तु तुम बहुत लम्बे हो और तुम्हारे भीतर झिझक दीख रही है यह ठीक नहीं है हला ! ” " परन्तु यह झिझक नहीं है - व्रीड़ा है सखि ! "