पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/२७०

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71 . द्वन्द्व उसी सामनेर ने आकर सोम से कहा - “ चलिए भन्ते , कुमार विदूडभ आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं । “ कुमार विदूडभ ? ” सोम ने आश्चर्यचकित होकर कहा । " श्रमण भगवान् के आदेशानुसार ही वे आपसे भेंट किया चाहते हैं । " सोम ने और अधिक बात नहीं की । वह चुपचाप सामनेर के पीछे-पीछे हो लिए । एक छोटे - से अलिंद में राजकुमार विदूडभ गम्भीर मुद्रा में एक तृणास्तर पर बैठे थे। उनका वेश सादा था और कोई शस्त्र उनके पास न था । वे धवल कौषेय पट्ट पहने थे। उनके मुखमण्डल पर उनकी अल्पायु की अपेक्षा अधिक दीप्ति भासित हो रही थी । सोम का उन्होंने अभ्युत्थानपूर्वक स्वागत किया और मृदु वाणी से कहा __ “ स्वस्ति मित्र , मैं विदूडभ हूं। भगवान् ज्ञातिपुत्र ने मुझे चम्पा की राजनन्दिनी के संरक्षण का आदेश दिया है। सो मैं उनका संरक्षण स्वीकार करता हूं। अब तुम आश्वस्त हो । " सोम को यह भाषण न जाने कहां जाकर चुभ गया । उन्होंने एक प्रकार से उद्धत भाव से कहा - “किन्तु यह तो यथेष्ट नहीं है। सोम का यह उत्तर राजकुमार को कुछ धृष्ट प्रतीत हुआ। उन्होंने कहा “मित्र , तुम अप्रियवादी हो । कोसल के राजकुमार से तुम्हें मर्यादा से बात करनी चाहिए। " — “ कोसल राजकुमार का मैं उपकृत नहीं हूं और कोसल - परिवार ने राजकुमारी के साथ जो व्यवहार किया है, उसे देखते हए मैं नहीं समझता कि चम्पा - राजनन्दिनी किसी कोसल के संरक्षण में रहना स्वीकार करेंगी। " _ “मुझे श्रमण ज्ञातिपुत्र से ज्ञात हुआ है कि तुम मागध हो । सो मागध मित्र, तुम्हें विश्वास करना चाहिए कि मागधों से अधिक बुरा व्यवहार चम्पा की राजकुमारी के साथ कोसल में नहीं किया जाएगा। " सोम ने उत्तेजित होकर कहा “ राजकुमार, मागध कोसल से शिष्टाचार सीखने की अपेक्षा नहीं रखते । किन्तु राजकुमारी की इच्छा के विरुद्ध आप उनके संरक्षक नहीं हो सकते । " राजकुमार विदुडभ ने हंसकर कहा - “ सो ठीक है मित्र । कोसल मागधों के शास्ता बनने को उत्सुक नहीं हैं । परन्तु कुमारी की इच्छा और भगवान् महावीर के सत्परामर्श से कुमारी की सम्यक् व्यवस्था कर दी जाएगी । इस सम्बन्ध में तुम सर्वथा निश्चिन्त रह सकते हो । " “किन्तु मैं अब तक कुमारी का अभिभावक रहा हूं। मैं जब तक आश्वस्त न हूं....। " " तो तुम आश्वस्त रहो मित्र , अब से मैं कुमारी का अभिभावक रहा। "