पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३००

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नाउन ने होठों पर उंगली रख संकेत से उसे अपने पास बुलाया और कान में धीरे से कहा “ एक चिड़िया फांस लाई हूं। अड्डे में समज्या - अभिनय करेगी, ग्राहकों को मद्य देगी । अवसर पाकर बेच लेना । बीस दम्म से कम न मिलेंगे ? " अरे वाह, यह तो बहुत बढ़िया बात है । वह क्या कोई अगारिका है ? " " नहीं, नटनी है। " " कोई हानि नहीं, किन्तु सुन्दरी है ? " " देख ले , सुन्दरी क्या ऐसी - वैसी है ! " " तो उसे पिछले द्वार से भीतर ला , वहां आलोक में देखें । " “ पर कहे देती हूं , दस दम्म लूंगी । एक भी कम नहीं। " “ पर पहले माल तो दिखा ? " " हां माल देखो, खूब खरा है। " नाउन बाहर आई और कुण्डनी को भीतर ले गई । कुण्डनी का रूप देख दीहदन्त की आंखों में धुन्ध छा गई । उसने हाथ मलते हुए कहा - " हन्दजे , तू क्या समज्या - अभिनय कर सकती है ? " कुण्डनी ने वीड़ा - लास्य दिखाकर और तनिक मुस्कराकर सिर हिला दिया । " तब अच्छा है । तो नाउन , पांच दम्म ले , देख ले । अभी नई है , बहुत खिलाना पिलाना -सिखाना पड़ेगा। " " नहीं रे, सिखाना नहीं , सब जानती है, देख । " उसने जाकर कुण्डनी को संकेत किया । कुण्डनी ने जो नृत्य -लास्य किया और रूप का उभार दिखाया तो उपस्थित चोर और हलाकू लम्पट वाह -वाह करने लगे । जिस जुआरी ने अपनी औरत को गिरवी रख दिया था , उसने हाथ के दम्म उछालकर कहा - “ कह रे दीह, कितने में बेचेगा इस दासी को ? " उसके साथ वाले पुरुष ने उसे धकेलते हुए बांह से होठों का मद्य पोंछते हुए कहा “ यह दासी मैं लूंगा । मुझे सौ दम्म को भी भारी नहीं। " इसी समय सोम नागरिक लम्पट का वेश धारण किए अड्डे में आ एक आसन पर बैठ गया । मद्य ढालनेवाली लड़की ने सुराभाण्ड और चषक उसके आगे धर दिए । सोम ने थोड़े- से स्वर्णखण्ड दीहदन्त के आगे फेंककर कहा - “ दे सबको मद्य । ” सब मद्यप प्रसन्न हो उठे और उसके चारों ओर आ जुटे । दीहदन्त ने उसे प्रसन्न करने को आसन्दी - आसिक्त सोपधान पर उसे बैठाया । नाउन ने कहा - “ यही वह है दन्त ? " " वह कौन ? " “ राजपुत्र को जिसने उड़ाया है। देखते तो हो , कितना स्वर्ण है इसके पास। " दीहदन्त ने हंसकर कहा - “ यह नहीं है, वह है। " उसने दोनों जुआरियों की ओर संकेत किया । नाउन ने उचककर उन्हें देखा और कुण्डनी को संकेत किया । कुण्डनी ने लीला-विलास करके उन्हें सम्मोहित कर दिया । दोनों झगड़ा बन्द कर हंसने और मद्य पीने लगे ।