पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३१४

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86. अभिषेक यज्ञ - मण्डप में बड़ी भीड़ थी । अध्वर्य और सोलहों ऋत्विक अभिषेक - द्रव्य लिए उपस्थित थे। अनुगत राजा , क्षत्रप , माण्डलिक , गणपति , निगम , सेट्ठि , गृहपति , सामन्त और जानपद सभी एकत्र थे । राजा की प्रतीक्षा हो रही थी । राजा अन्तःपुर से नहीं आ रहे थे। राजा के इस विलम्ब के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की अटकलें लगाई जा रही थीं । बहुत लोग बहुविध कानाफूसी कर रहे थे। आचार्य अजित केसकम्बली ने उच्च स्वर से कहा - “ अभिषेक का महायोग उपस्थित है, यजमान यज्ञभूमि में आकर वेदी पर बैठे ! " इसी समय यज्ञभूमि के प्रान्त में कोलाहल होने लगा। क्षण -भर बाद ही सोमप्रभ रक्त से भरा खड्ग हाथ में लिए हुए, रक्तलिप्त घायल राजपुत्र विदूडभ को सम्मुख किए , हठात् यज्ञभूमि में घुस आए। नग्न खड्ग हाथ में लिए कारायण और उनके भट उनके पीछे थे। यह दृश्य देखकर चारों ओर कोलाहल मच गया । अनेक क्षत्रपों , राजाओं और मांडलिकों ने खड्ग खींच लिए। सेना में भी हलचल मच गई और चारों ओर कोलाहल होने लगा । सोमप्रभ ने आगे बढ़कर वेदी पर विदडभ को प्रतिष्ठित करके खड्ग और हाथ ऊपर उठाकर उच्च स्वर से कहा - " भंत्तेगण, राज - सभासद्, ब्राह्मण और पौर जानपद सुनें ! यह महाराज विदूडभ कोसलपति यहां उपस्थित हैं । अभिषेक महायोग है, अभिषेक प्रारम्भ हो । मैं मागध सोमप्रभ घोषित करता हूं कि कोसल के अबाध अधिपति परमेश्वर महाराज विदूडभ हैं । जो कोई विरोध का साहस करेगा , उसका सत्कार यह खड्ग करेगा। " उन्होंने वही रक्त से भरा हुआ खड्ग हवा में ऊंचा किया । बहुत से कण्ठों ने एक साथ ही जय - जयकार किया - “ महाराज कोसलपति की जय ! देव कोसलपति विदूडभ की जय ! " बहतों ने विरोध में शस्त्र निकाले । कारायण, उनके भट और सोम व्याघ्र की भांति उन पर टूट पड़े । देखते - ही - देखते यूप के चारों ओर मुर्दो के ढेर लग गए । यज्ञ - पश् अव्यवस्थित हो इधर - उधर भागने लगे । अनेक राजाओं, क्षत्रपों और मण्डलाधिपों ने इन वीरों का साथ दिया । वे गाजर - मूली की तरह विरोधियों को काटने लगे। पौर जानपद , निगम , श्रेणीपति सब बार -बार महाराज विदूडभ का जय - जयकार करने लगे । विरोधी दल का कोई नेता न रह गया । ___ अध्वर्यु अजित केसकम्बली ने हाथ उठाकर कहा - “ सब कोई सुनें , कौन है जो नये महाराज का विरोधी है ? वह आगे आए। " कोई प्रमुख पुरुष आगे नहीं बढ़ा। आचार्य ने पुकारकर फिर कहा - “जिसे नये राजा से विरोध हो , वह अग्रसर हो । ” इस पर भी सन्नाटा रहा। तब तीसरी बार घोषणा हुई । अब आचार्य अजित केसकम्बली ने कहा - “ सब कोई सुनें ! पुराना राजा यहां पर