योद्धा तथा कठिन कर्मठ होने के अपने प्रमाण कुछ ही क्षणों में दे चुका है, वास्तव में इस महामहिमामयी दिव्य वीणा को भी बजा सकता है और कदाचित् उसी कौशल से , जैसे उस दिन महाराज उदयन ने बजाई थी , इसी से वह मेरा नृत्य भी कराना चाहता है, परन्तु उसकी स्पर्धा तो देखनी चाहिए कि वह मेरे आवास में जाने में अपना मान- भंग मानता है , जहां स्वयं प्रियदर्शी महाराज उदयन ने प्रार्थी होकर नृत्य - याचना की थी । कौन है यह लौह पुरुष ? कौन है यह साधारण और असाधारण का मिश्रण , कौन है यह अति सुन्दर, अति भव्य , अति - मधुर , अति कठोर ? यह पौरुष की अक्षुण्ण मूर्ति ! जीवन , प्रगति और विकास का महापुञ्ज ! कैसे वह उनकी अन्तरात्मा में बलात् प्रविष्ट होता जा रहा om अम्बपाली की दृष्टि उसी वीणा पर थी , उन्हें हठात् उस वीणा के मध्य- से एक मुख प्रकट होता - सा प्रतीत हुआ, यह उसी युवक का मुख था । कैसा प्रफुल्ल गौर , कैसा प्रिय , अम्बपाली ने कुछ ऐसी अनुभूति की , जो अब तक उन्हें नहीं हुई थी । अपने हृदय की धड़कन वह स्वयं सनने लगीं । उनका रक्त जैसे तप्त सीसे की भांति खौलने और नसों में घूमने लगा । उनके नेत्रों के सम्मुख शत - सहस्र -लक्ष - कोटि रूपों से वही मुख पृथ्वी, आकाश और वायुमण्डल में व्याप्त हो गया । उस मुख से वज्र - ध्वनि में सहस्र - सहस्र बार ध्वनित होने लगा - “नाचो अम्बपाली , नाचो, वही नृत्य , वही नृत्य ! और अम्बपाली को अनुभव हुआ है कि कोई दुर्धर्ष विद्युत्धारा उनके कोमल गात में प्रविष्ट हो गई है । वह असंयत होकर उठीं । कब उनके कमनीय कुन्तलों से कृत्रिम पुरुष- वेष लोप हो गया , उन्हें भान नहीं रहा । उन्हें प्रतीत हुआ मानो वही प्रिय युवक उस चौकी पर बैठकर वैसे ही कोशल से वीणा पर तीन ग्रामों से अपना हस्तलाघव प्रकट कर रहा है, उसकी झंकार स्पष्ट उनके कानों में विद्युत्- प्रवाह के साथ प्रविष्ट होने लगी और असंयत , असावधान अवस्था में उनके चरण थिरकने लगे। आप - ही - आप उनकी गति बढ़ने लगी और वह आत्मविस्मृत होकर वही अपार्थिव नृत्य करने लगीं ।
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