पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३४८

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छिप कहां गया ? उसने केवल मेरी आत्मा ही को आक्रान्त किया , शरीर को क्यों नहीं ? यह शरीर जला जा रहा है , इसमें आबद्ध आत्मा छटपटा रही है, इस शरीर के रक्त की एक - एक बूंद ‘प्यास-प्यास चिल्ला रही है, इस शरीर की नारी अकेली रुदन कर रही है। अरे ओ , आओ, तुम , इसे अकेली न छोड़ो ! अरे ओ पौरुष , ओ निर्मम , कहां हो तुम ; इसे आक्रान्त करो , इसे विजय करो; इसे अपने में लीन करो। अब एक क्षण भी नहीं रहा जाता । यह देह , यह अधम नारी- देह, नारीत्व की समस्त सम्पदा- सहित इस निर्जन वन में अकेली अरक्षित पड़ी है, अपने अदम्य पौरुष से अपने में आत्मसात् कर लो तुम , जिससे यह अपना आपा खो दे; कुछ शेष न रहे। " अम्बपाली ने दोनों हाथों से कसकर अपनी छाती दबा ली । उनकी आंखों से आग की ज्वाला निकलने लगी, लुहार की धौंकनी की भांति उनका वक्षस्थल ऊपर -नीचे उठने बैठने लगा । उसका समस्त शरीर पसीने के रुपहले बिन्दुओं से भर गया । उसने चीत्कार करके कहा - “ अरे ओ निर्मम , कहां चले गए तुम , आओ, गर्विणी अम्बपाली का समस्त दर्प मर चुका है , वह तुम्हारी भिखारिणी है, तुम्हारे पौरुष की भिखारिणी। ” उसने उन्मादग्रस्त - सी होकर दोनों हाथ फैला दिए । युवक ने कुटी -द्वार खोलकर प्रवेश किया । देखा , कुटी के मध्य भाग में देवी अम्बपाली उन्मत्त भाव से खड़ी है, बाल बिखरे हैं , चेहरा हिम के समान श्वेत हो रहा है , अंग - प्रत्यंग कांप रहे हैं । उसने आगे बढ़कर अम्बपाली को अपने आलिंगन -पाश में बांध लिया , और अपने जलते हुए होंठ उसके होंठों पर रख दिए , उसके उछलते हुए वक्ष को अपनी पसलियों में दबोच लिया , सुख के अतिरेक से अम्बपाली संज्ञाहीन हो गईं, उनके उन्मत्त नेत्र मुंद गए, अमल - धवल दन्तपंक्ति से अस्फुट सीत्कार निकलने लगा , मस्तक और नासिका पर स्वेद बिन्दु हीरे की भांति जड़ गए । युवक ने कुटी के मध्य भाग में स्थित शिला - खण्ड के सहारे अपनी गोद में अम्बपाली को लिटाकर उसके अनगिनत चुम्बन ले डाले - होठ पर, ललाट पर, नेत्रों पर , गण्डस्थल पर , भौहों पर, चिबुक पर। उसकी तृष्णा शान्त नहीं हुई । अग्निशिखा की भांति उसके प्रेमदग्ध होंठ उस भाव-विभोर युवक की प्रेम-पिपासा को शतसहस्र गुणा बढ़ाते चले गए। धीरे - धीरे अम्बपाली ने नेत्र खोले । युवक ने संयत होकर उनका सिर शिला - खण्ड पर रख दिया । अम्बपाली सावधान होकर बैठ गईं, दोनों ही लज्ज़ा के सरोवर में डूब गए और उनकी आंखों के भीगे हुए पलक जैसे आनन्द -जल के भार को सहन न कर नीचे की ओर झुकते ही चले गए। युवक ही ने मौन भंग किया । उसने कहा - “ देवी अम्बपाली, मुझे क्षमा करना , मैं संयत न रह सका। " _____ अम्बपाली प्यासी आंखों से उसे देखती रहीं । उसके बाद सूखे होठों में हंसी भरकर उन्होंने कहा - “ अन्ततः तुमने मुझे जान लिया प्रिय ! ” " कल जिस क्षण मैंने आपको नृत्य करते देखा था , तभी जान गया था देवी ! " “ वह नृत्य तुम्हें भाया ? ” । “ नरलोक में न तो कोई वैसा नृत्य कर सकता है और न देख ही सकता है देवी ! ” “ और वह वीणा -वादन ? "