पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३४९

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" कुछ बन पड़ता है, पर अभी अधिकारपूर्ण नहीं । मैं तुम्हारे साथ बजा सकुंगा इसकी आशा न थी , पर तुम्हारे नृत्य ने ही सहायता दी । " “ ऐसा तो महाराज उदयन भी नहीं बजा सकते प्रिय ! ” देवी ने मुस्कराकर कहा । युवक हंस दिया , कुछ देर तक दोनों चुप रहे । दोनों के हृदय आन्दोलित हो रहे थे । युवक पर अम्बपाली का परिचय एवं नाम प्रकट हो गया था , पर अम्बपाली अभी तक उस पुरुष से नितान्त अनभिज्ञ थीं , जिसने उनका दुर्जय हृदय जीत लिया था । किन्तु वह पूछने का साहस नहीं कर सकती थीं । कुछ सोच -विचार के बाद उन्होंने कहा - “ इसके बाद ? युवक ने यन्त्र - चालित - सा होकर कहा - “ अब इसके बाद ? " "मुझे अपने आवास में जाना होगा प्रिय , परन्तु मैं तुम्हारा कुल - गोत्र एवं तुम्हारे नाम से भी परिचित नहीं, अपना परिचय देकर बाधित करो। " “ मुझे तुम ‘ सुभद्र के नाम से स्मरण रख सकती हो । " " अभी ऐसा ही सही, तो प्रिय , सुभद्र, अब मुझे जाना होगा । " “ अभी नहीं देवी अम्बपाली ! अम्बपाली ने प्रश्नसूचक ढंग से युवक की ओर देखा । युवक ने कहा - “ तुम्हें फिर नृत्य करना होगा । " " नृत्य ? " " हां , और उसमें कठिनाई यह होगी कि मैं वीणा न बजा सकूँगा। " “ परन्तु.... ” “मैं तुम्हारी नृत्य - छवि का चित्र खींचूंगा । " " परन्तु अब नृत्य नहीं होगा । ” “निस्सन्देह इस बार नृत्य होगा तो प्रलय हो जाएगी , परन्तु नृत्य का अभिनय होगा। " “ अभिनय ? " " हां , वह भी अनेक बार। " " अनेक बार ! " “ मुझे प्रत्येक भाव-विभाव को चित्र में अंकित करना होगा देवी ! " “ और मेरा आवास में जाना ? " " तब तक स्थगित रहेगा। " “किन्त... " अम्बपाली चुप रहीं । युवक ने कहा - “किन्तु क्या देवी ? " “ यहां क्यों ? तुम आवास में आकर चित्र उतारो। " " तुम्हारे आवास में ! जो सार्वजनिक है! जो तुम्हें तुम्हारे शुल्क में दिया गया है! देवी अम्बपाली, मैं लिच्छवि गणतन्त्र का विषय नहीं हूं । मैं इस धिक्कृत कानून को सहन नहीं कर सकता , जिसके आधार पर तुम्हारी अप्रतिम प्रतिमा बलात् सार्वजनिक कर दी गई । " " तो वह तुम्हारी दृष्टि में एक व्यक्ति की वासना की सामग्री होनी चाहिए थी ? " " क्यों नहीं, और वह एक व्यक्ति तुम्हीं स्वयं , और कोई नहीं ।