पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३५०

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“यह तो बड़ी अद्भुत बात तुमने कही भद्र, किन्तु मैं अपनी ही वासना की सामग्री कैसे ? " “ सभी तो ऐसे हैं देवी! व्याकरण का जो उत्तम पुरुष है, वही पृथ्वी की सबसे बड़ी इकाई है और वही अपनी वासना का भोक्ता है। उसकी वासना ही अपनी स्पर्धा के लिए , व्याकरण का मध्यम पुरुष नियत करती है । " अम्बपाली चुपचाप सुनती रहीं। युवक ने फिर कहा - “ इसी से तो जब तुम्हारी वासना का भोग , तुम्हारा वह अलौकिक व्यक्तित्व बलात् सार्वजनिक कर दिया गया , तब तुम कितनी क्षुब्ध हो गई थीं ! ” । अम्बपाली इस असाधारण तर्क से अप्रतिभ हो गईं । वह सोच रही थीं , पृथ्वी पर एक ऐसा व्यक्ति अन्ततः है तो , जिसके तलवों में मेरे आवास पर आते छाले पड़ते हैं , जो मुझे सार्वजनिक स्त्री के रूप में नहीं देख सकता । आह, मैं ऐसे पुरुष को हृदय देकर कृतकृत्य हुई , शरीर भी देती तो शरीर धन्य हो जाता। परन्तु इसे तो मैं बेच चुकी मुंह- मांगे मूल्य पर, हाय रे वेश्या जीवन ! ” युवक ने कहा - “ क्या सोच रही हो देवी ? " “ यही कि जिसने प्राणों की रक्षा की उसका अनुरोध टाला कैसे जा सकता है ? " सुभद्र ने मुस्कराकर रंग की प्यालियों को ठीक किया और कूची हाथ में लेकर चित्रपट को तैयार करने लगा । कुछ ही क्षणों में दोनों कलाकार अपनी - अपनी कलाओं में डूब गए । चित्रकार जैसी - जैसी भाव -भंगी का संकेत अम्बपाली को करता , अम्बपाली यन्त्रचालिता के समान उसका पालन करती जाती थी । देखते - ही - देखते चित्रपट पर दिव्य लोकोत्तर भंगिमा - युक्त नृत्य की छवि अंकित होती गई । दोपहर हो गई, दोनों कलाकार थककर चूर - चूर हो गए। श्रमबिन्दु उनके चेहरों पर छा गए। हंसकर अम्बपाली ने कहा “ अब नहीं, अब पेट में आंतें नृत्य कर रही हैं ; उतारोगे तुम इनकी छवि प्रिय ? " युवक सरल भाव से हंस पड़ा । उसने हाथ की कूची एक ओर डाल दी और अम्बपाली के पाश्र्व में शिला - खण्ड पर आ बैठा । अम्बपाली के शरीर में सिहरन दौड़ गई । युवक ने कहा - “ देवी अम्बपाली! कभी हम इन दुर्लभ क्षणों के मूल्य का भी अंकन करेंगे ? ” “ उसके लिए तो जीवन की अगणित सांसें हैं । किन्तु तुम भी करोगे प्रिय ? " " ओह, तुमने मेरी शक्ति देखी तो ? " " देखी है । उस समय एक ही वार में अनायास ही सिंह को मार डालने में और इसके बाद उससे भी कम प्रयास से अधम अम्बपाली को आक्रान्त कर डालने में । अब और भी कुछ शक्ति -प्रदर्शन करोगे ? " __ “ इन दुर्लभ क्षणों के मूल्य का अंकन करने में देवी अम्बपाली, आपकी अभी बखानी हई मेरी सम्पूर्ण शक्ति भी समर्थ नहीं होगी। " वह हठात् मौन हो गया । अम्बपाली पीपल के पत्ते के समान कांपने लगीं । युवक का शरीर उनके वस्त्रों से छू रहा था । मध्याह्न का सुखद पवन धीरे - धीरे कुटिया में तैर रहा था , उसी से आन्दोलित होकर अम्बपाली की दो - एक अलकावलियां उनके पूर्ण चन्द्र के समान ललाट पर क्रीड़ा कर रही थीं । युवक ने अम्बपाली का हाथ अपने दोनों हाथों में