पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३७९

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लिच्छवि - राजकीय -विभाग से उनके लिए नित्य एक सहस्र सुवर्ण और आहार्य सामग्री आती। नगर के अन्य गण्यमान्य सेट्ठि -सामन्त भी इस ब्राह्मण के सत्कार के लिए वस्त्र , फल, स्वर्ण, पात्र निरन्तर भेजते रहते । पर यह तेजस्वी ब्राह्मण इस सब उपानय - सामग्री को छूता भी न था । वह उस सम्पूर्ण सामग्री को उसी समय ब्राह्मणों और याचकों में बांट देता था । इससे सूर्योदय के पूर्व ही से सोमिल ब्राह्मण के द्वार पर याचकों, ब्राह्मणों और बटुकों का मेला लग जाता था । देखते- ही - देखते इस तेजपुञ्ज ब्राह्मण के प्रतिदिन सहस्रसुवर्ण- दान - माहात्म्य और वैशिष्ट्य की चर्चा वैशाली ही में नहीं , आसपास और दूर - दूर तक फैल चली । याचक लोग याचना करने और भद्र संभ्रान्त जन इस ब्राह्मण का दर्शन करने दूर - दूर से आने लगे। ब्राह्मण स्वच्छ जनेऊ धारण कर विशाल ललाट पर श्वेतचन्दन का लेप लगा एक कुशासन पर बहुधा मौन बैठा रहता । एक उत्तरीय मात्र उसके शरीर पर रहता । वह बहुत कम भाषण करता तथा सोमिल की यज्ञशाला के एक प्रान्त में एक काष्ठफलक पर रात्रि को सोता था । वह केवल एक बार हविष्यान्न आहार करता । वह यज्ञशाला के प्रान्त में बनी घास की कुटीर के बाहर केवल एक बार शौचकर्म के लिए ही निकलता था । _ __ सहस्र सुवर्ण नित्य दान देने की चर्चा फैलते ही अन्य श्रीमन्त भक्तों ने भी सुवर्ण भेंट देना प्रारम्भ किया - सो कभी - कभी तो प्रतिदिन दस सहस्र सुवर्ण नित्य दान मिलने लगा । ब्राह्मण याचक आर्य वर्षकार का जय - जयकार करने लगे और अनेक सत्य - असत्य , कल्पित - अकल्पित अद्भुत कथाएं लोग उसके सम्बन्ध में कहने लगे । बहुमूल्य उपानय के समान ही यह ब्राह्मण भक्तों की तथा राजदत्त सेवा भी नहीं स्वीकार करता था । वज्जीगण के वैदेशिक खाते से जो दास - दासी और कर्णिक सेवा में भेजे गए थे, बैठे - बैठे आनन्द करते । ब्राह्मण उससे वार्ता तक नहीं करते, पास तक नहीं आने देते । केवल ब्राह्मण सोमिल ही आर्य वर्षकार के निकट जा पाता, वार्तालाप कर पाता । वही उन्हें अपने हाथ से मध्याह्नोत्तर हविष्यान्न भोजन कराता - जो सूद -पाचकों द्वारा नहीं, स्वयं गृहिणी , सोमिल की ब्राह्मणी, रसोड़े से पृथक् अत्यन्त सावधानी से तैयार करती थी , और जिसे सोमिल - दम्पती को छोड़ कोई दूसरा छु या देख भी नहीं सकता था । ऐसी ही अद्भुत दिनचर्या इस पदच्युत अमात्य ब्राह्मण की वैशाली में चल रही थी ।