पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/३७८

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110. दक्षिणा -ब्राह्मणा- कुण्डपुर - सन्निवश वैशाली नगर का बड़ा भारी विस्तार था । उसके अन्तरायण में तीन सन्निवेश थे, जो अनुक्रम से उत्तम , मध्यम और कनिष्ठ के नाम से विख्यात थे। उत्तम सन्निवेश में स्वर्ण कलशवाले सात सहस्र हर्म्य थे। यहां केवल सेट्ठि गृह- पति और निगमों का निवास था । मध्यम सन्निवेश में चौदह सहस्र चांदी के कलशवाली पक्की अट्टालिकाएं थीं । इनमें विविध व्यापार करनेवाले महाजन और मध्यम वित्त के श्रेणिक जन रहते थे। तीसरे कनिष्ठ सन्निवेश में तांबे के कलश -कंगूरवाले इक्कीस सहस्र घर थे। जहां वैशाली के अन्य पौर नागरिक उपजीवी जन रहते थे। इस अन्तरायण के सिवा वैशाली के उत्तर -पूर्व में दो उपनगर और थे। एक तो उत्तर -ब्राह्मण - क्षत्रिय - सन्निवेश कहा जाता था । यह ज्ञातृवंशीय क्षत्रियों का सन्निवेश था । इसके निकट उनका कोल्लाग - सन्निवेश था , जिसे छूता हुआ ज्ञातृ- क्षत्रियों का प्रसिद्ध द्युतिपलाश नामक उद्यान एवं चैत्य था । दूसरे उपनिवेश का दूसरा भाग दक्षिण -ब्राह्मण कुण्डपुर - सन्निवेश कहलाता था । इसमें केवल श्रोत्रिय ब्राह्मणों के घर थे, जो परम्परा से वहीं पीढ़ी - दर - पीढ़ी रहते चले आए थे। वैशाली की पश्चिम दिशा में वाणिज्य - ग्राम था । इसमें विश जन और कम्मकर रहते थे जो अधिकतर कृषि और पशुपालन का धन्धा करते थे। इस सम्पूर्ण बस्ती को वैशाली नगरी कहा जाता था । दक्षिण -ब्राह्माण - कुण्डपुर - सन्निवेश में सोमिल ब्राह्मण रहता था । वह ब्राह्मण धनिक, सम्पन्न और पण्डित था । ऋगादि चारों वेदों का सांगोपांग ज्ञाता और ब्राह्मण -कार्य में निपुण था । बहुत - से सेट्ठिजन और राजा उसके शिष्य थे। बहुत - से बटुक देश- देशान्तरों से आकर उसके निकट विद्यार्जन करते थे। वह विख्यात काम्पिल्य शाखा का यजुर्वेदी ब्राह्मण था । वेदाध्यायियों से उसका घर भरा रहता था । उसके घर की शुक - सारिकाएं ऋग्वेद की ऋचाएं उच्चरित करती थीं । वे पद- पद पर विद्यार्थियों के अशुद्ध पाठ का सुधार करती थीं । उसका घर यज्ञ - धूम से निरन्तर धूमायित रहता था । सम्पूर्ण दक्षिण -ब्राह्मण- कुण्डपुर सन्निवेश में यह बात प्रसिद्ध थी कि श्रोत्रिय सोमिल के ऋषिकल्प पिता ऋषिभद्र के होमकालीन श्रमसीकर साक्षात् वीणाधारिणी सरस्वती अपने हाथों से पोंछती थीं । श्रोत्रिय सोमिल उषाकाल ही में हवन करने बैठ जाते ; दो दण्ड दिन चढ़े तक वे यज्ञ करते , बलि देते , फिर धुएं से लाल हुई आंखों और पसीने से भरा शरीर लिए, अध्यापन के लिए कुशासन पर बैठ जाते । वेदपाठी होने के साथ ही वे अपने युग के दिग्गज तार्किक भी थे। उनकी विद्वत्ता और ब्राह्मण्य का वैशाली के गणप्रतिनिधियों पर बड़ा प्रभाव था । राजवर्गी तथा जानपदीय सभी उनका मान करते थे। इन्हीं सोमिल ब्राह्मण के यहां मगध के निर्वासित और पदच्युत महामात्य कूटनीति के आगार आर्य वर्षकार ने आतिथ्य ग्रहण कर निवास किया था । विज्ञापन के अनुसार