पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

130.गणदूत गणदूत गान्धार काप्यक का बिम्बसार श्रेणिक ने बड़ी तड़क - भड़क से स्वागत किया । मागध सीमा में पहुंचते ही राज्य की ओर से प्रत्येक सन्निवेश पर उसके स्वागत एवं सुख- सुविधा के सब साधन जुटे हुए मिलने लगे। राजगृह आने पर पान्थागार में उसे राजार्ह भव्य निवास और सत्कार मिला । मागध संधिवैग्राहिक अभयकुमार विशेष रूप से गणदूत की व्यवस्था पर नियत हुआ । जयराज ने मार्ग में काप्यक से मिलने की बिल्कुल चेष्टा नहीं की , परन्तु राजगृह में इसे पान्थागार के अध्यक्ष के माध्यम से राजदूत से परिचय प्राप्त करने तथा उसके मैत्री लाभ करने के अभिनय का अच्छा सुअवसर मिल गया । प्रतीहार से घनिष्ठता होने पर कभी सांकेतिक भाषा में और कभी स्पष्ट मिलकर परस्पर विचार - विनिमय करने का सुअवसर उसे मिलने लगा । गणदूत और उसका पूर्वापर सम्बन्ध मागध संधिवैग्राहिक अभयकुमार भी नहीं भांप सका। जयराज कभी अश्व पर सवार होकर और कभी पांव प्यादा नगर , वीथी, हाट में जा -जाकर राजगृह के दुर्ग , सैन्य , अस्त्रागार और शस्त्रास्त्र निर्माण आदि युद्धोद्योगों को देखने तथा विविध मानचित्र , संकेतचित्र और विवरणपत्रिकाएं गूढ़ लिपि में तैयार करने लगा । - प्रतीहार - पत्नी का वह क्षणिक परिचय उसकी आसक्ति में परिणत हो गया । उसकी आसक्ति भी अधिक काम आई। वह अन्त : पुर का राई - रत्ती हालचाल ला -लाकर जयराज को देने लगी । अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और उपयोगी सूचनाएं उससे उन्होंने प्राप्त कर लीं । सम्राट के दरबार में उपस्थित होकर उपानय उपस्थित करने और सम्राट् से मिलने का दिन नियत हो गया । काप्यक ने जयराज से मिलकर यह निर्णय कर लिया कि सम्राट् से गणदूत के रूप में काप्यक नहीं, जयराज ही मिलेगा । यह एक जोखिमपूर्ण योजना थी , परन्तु अनिवार्य थी । यह भी तय हआ कि सम्राट की भेंट के तत्काल बाद ही जयराज को राजगृह से प्रस्थान भी कर देना चाहिए । उसने यह सब व्यवस्था ठीक -ठीक कर ली और अपने कौशल तथा इन तीनों सहायकों की सहायता से वह अनायास ही गणदूत के रूप में सम्राट् के सम्मुख जा उपस्थित हुआ । कृषक-बालक उसके लिए बड़ा सहायक प्रमाणित हुआ। वह दिन - भर, अपने टाघन पर चढ़कर राजगृह के बाहर - भीतर यथेष्ट चक्कर लगाया करता, विविध जनों से मिलता , गप्पें मारता और बहुत - सी जानने योग्य बातें जयराज को आ बताता था । जयराज उससे हंसते -हंसते काम की बातें पूछ लेता, युक्ति और चतुराई से अभीष्ट कार्य, बिना ही मूल कारण प्रकट किए, करा लेता । तरुण कृषक-बालक विविध पक्वान्न और उत्तम भोजन पाकर तथा टाघन पर स्वच्छन्द घूमते रहकर अतिप्रसन्न हो तन - मन से जयराज की सब इच्छाओं और आदेशों की पूर्ति करने लगा ।