पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४४३

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"क्यों नहीं आयुष्मान्, तू कथनीय कह।" “तो देव, बज्जीगण का अनुरोध है कि सम्राट् आर्य महामात्य को राजगृह में फिर से सुप्रतिष्ठित करें।” “यह तो मगध राज्य का अपना प्रश्न है भद्र, वज्जी गणराज्य को अनुरोध करने का इसमें क्या अधिकार है? अपितु राजदण्ड प्राप्त बहिष्कृत महामात्य को राज-नियम के विपरीत वज्जीगणसंघ ने प्रश्रय देकर मागध राज्य-संधि भंग की है, जिसका दायित्व वज्जीगण-संघ पर है।" “इसके विपरीत देव, वज्जीगण-संघ की यह धारणा है कि सम्राट् की अभिसंधि से महामात्य कूटनीति का अनुसरण कर तूष्णी युद्ध कर रहे हैं।" "तो इस धारणा के वज्जी गणा-संघ के पास पुष्ट प्रमाण होंगे?" "देव, वज्जी गण-संघ सम्राट् की मैत्री का मूल्य समझता है। वह बिना प्रमाण कुछ नहीं करता, सम्राट् को मैं विश्वास दिलाता हूं।" “आयुष्मान्, क्या कहना चाहता है, कह।" "महाराज,वैशाली के अष्टकुल सम्राट् से मैत्री सम्बन्ध स्थिर किया चाहते हैं।" “किन्तु किस प्रकार भद्र?" “मागध साम्राज्य के प्रति वैशाली के अष्टकुल के जैसे विचार हैं, वह मैं भली भांति जानता हूं।" “मैं भी क्या उनसे अवगत हो सकता हूं, भद्र!" "महाराज,वज्जीगण सम्राट् की किसी भी इच्छा की अवहेलना नहीं करेंगे।" "तब तो मुझे केवल यही विचार करना है कि मुझे उनसे क्या कहना चाहिए।" “सम्राट् यदि स्पष्ट कहें।” “यह तो व्यर्थ होगा आयुष्मान्!" "तो क्या मैं ही सम्राट को वज्जी गण-संघ का संदेश निवेदन करूं?" “यह अधिक उपयुक्त होगा।" “मैं स्पष्ट कहने के लिए सम्राट् से क्षमा-याचना करता हूं।" “कह भद्र, कथनीय कह!" "देव यह जानते हैं कि वह बात अब सार्वजनिक हो चुकी है।" 'आयुष्मान्, तेरा अभिप्राय क्या है?" “वह स्पष्ट है, देव यदि अष्टकुल की किसी कुलीन कुमारी से विवाह करना चाहते हैं तो यह सुकर है।" "प्रस्ताव महत्त्वपूर्ण है और इससे मेरी प्रतिष्ठा होगी।" “साथ ही अष्टकुल के वज्जी गणतन्त्र और मगध-साम्राज्य की मैत्री-समृद्धि भी बढ़ेगी। किन्तु इसके लिए एक वचन देना होगा।' "कैसा वचन?" "केवल लिच्छवि कुमारी का पुत्र ही भावी मगध-सम्राट् होगा।" "केवल यही? और कुछ तो नहीं?" "नहीं देव!" "