पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४४४

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" आयुष्मान् को कुछ और भी कथनीय है? " “ यत्किंचित ; महाराज , देवी अम्बपाली वज्जीगण का विषय हैं , उन पर सम्पूर्ण गणजनपद का समान अधिकार है । अष्टकुल उन पर किसी एक का एकाधिकार सहन नहीं करेगा। " “ यह मैं समझ गया और कह भद्र! " “ और तो कुछ कथनीय नहीं है देव ! " " कुछ भी नहीं ? " " नहीं । ” “ अच्छा, तो मैं अष्टकुल का प्रस्ताव अस्वीकार करता हूं । " " क्या आप अष्टकुल की किसी भी कुमारी से विवाह करना अस्वीकार कर रहे हैं ? " “ यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है भद्र , किन्तु मैं इसे अपनी स्वेच्छा और भावना की बलि देकर नहीं स्वीकार कर सकता । रही देवी अम्बपाली की बात ; वज्जीगण के उस धिक्कृत कानून की बात मैं जानता हूं; परन्तु आयुष्मान् , कोई भी मागध स्त्री जाति के अधिकारों को हरण करनेवाले इस कानून के विरोध में खड्ग - हस्त होना आनन्द से स्वीकार करेगा। अच्छा आयुष्मान् , अब विदा! अपने प्रस्ताव के लिए अष्टकुल के वज्जीगण प्रमुखों से मेरी कृतज्ञता अवश्य प्रकट कर देना । " __ “ सम्राट्, मुझे यह भय है कि इस निर्णय का कोई भयानक परिणाम न हो , दो पड़ोसी राज्य -व्यवस्थाओं के बीच की सद्भावना न नष्ट हो जाए । ” “ आयुष्मान् , महाराज्यों की एक मर्यादा होती है और सम्राट की भी । मागध - सम्राट की एक पृथक् मर्यादा है आयुष्मान्! जिसका तू स्वप्न देख रहा है, मेरी अभिलाषा उससे बड़ी है । " __ “ इससे सम्राट् का यह अभिप्राय तो नहीं है कि सम्राट् अष्टकुलों के स्थापित गणतन्त्र से युद्ध छेड़ चुके । " _ “ अष्टकुलों के गणपति ने क्या इसी से भयभीत होकर तुझे उत्कोच देकर मेरे पास भेजा है? " “ महाराज, लिच्छवि गण -संघ छत्तीस राज्यों के संघ का केन्द्र है। हम गणशासित भलीभांति खड्ग पकड़ना जानते हैं । ” “ सुनकर आश्वस्त हुआ भद्र , मैं यह बात स्मरण रखूगा । ” इतना कहकर सम्राट आसन छोड़ उठकर खड़े हुए । जयराज क्रोध से तमतमाते हुए मुख से पीछे लौटे । चिन्ता की रेखाएं उनके सदा के उन्नत ललाट पर अपना प्रभाव डाल रही थीं ।