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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४५९

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छिपे रहते हैं और रात्रि को आक्रमण करते हैं । ये सब मंजे हुए योद्धा हैं , उनमें कुछ राजमार्ग पर आते - जाते राजस्व , अन्न और दूसरी युद्धोपयोगी वस्तुओं को लूट लेते हैं । कुछ किसानों में मिल उन्हें बलि न देने और विद्रोह करने को उकसाते हैं । कुछ नगरों, वीथियों, गुल्मों पर छापा मारकर लूटपाट करते हैं । " इतना ? " __ “ और भी भन्ते सेनापति , उसने मरुस्थल में धान्वन दुर्ग बनाए हैं , जंगलों में वन दुर्ग और झाड़ियों से भरे घने - गहन वनों में संकट - दुर्ग बना लिए हैं ; जहां दलदल हैं वहां ‘पंक बनाए हैं और पर्वतों पर शैल । पर्वतों की उपत्यकाओं में निम्न और विषम तथा गौओं और शकटों के चल - दुर्ग बनाए हैं । ये सब ‘ सत्र हैं और शत्रु के छिपकर घात करने के साधन हैं । इन सबको यथावत् निर्माण कर शत्रु कूटयुद्ध कर रहा है । वह बहुत धन - जन की हानि कर चुका है । " ____ “ तो इधर ब्राह्मण का तूष्णी -युद्ध और उधर आयुष्मान् सोमप्रभ का कूटयुद्ध । तो अब श्रेणिक बिम्बसार के प्रकट -युद्ध के कैसे समाचार हैं ? " “ कहता हूं भन्ते सेनापति , प्रथम तो यह कि उसने सोन, गंगा और बागमती के तट के सब दुर्गों की मरम्मत करा ली है तथा सोलह नये दुर्गनिर्माण किए हैं । इन दुर्गों में साल के मोटे खम्भों के तिहरे प्राकार हैं । प्रत्येक दुर्ग में तीन से सात सहस्र तक शिक्षित भट , पादातिक, अश्वारोही, रथी और गजारोही हैं । अन्न , जल और अन्य सामग्री इतनी संचित है कि दुर्गवासी आवश्यकता होने पर एक वर्ष तक उससे काम चला सकते हैं । " यह विवरण सुनकर सेनाध्यक्ष ने कहा " इस अवस्था को देखते तो भद्रिक की जितनी प्रशंसा की जाय , थोड़ी है । " सिंह ने कहा - "हुआ, आगे कहो! " जयराज ने कहा - “ उसने एक सुव्यवस्थित नौसेना भी तैयार कर ली है। इसमें बीस सहस्र नौकाएं हैं , जो तीन प्रकार की हैं : एक दीर्घा, जिनकी लम्बाई साठ हाथ और चौड़ाई चालीस हाथ है । ये हाथियों और अश्वों एवं रथों को स्थानान्तरित करती हैं । इनमें से प्रत्येक में सोलह नाविक और पचास धनुर्धर बैठ सकते हैं । दूसरी चपला , जो शीघ्र चलनेवाली , हल्की परन्तु अच्छी सुदृढ़ हैं । इनमें 8 नाविक और 20 धनु - खड्ग - शूलधारी बैठ सकते हैं । आर्य भद्रिक की योजना यह है कि विजय का पूरा दायित्व नौवाहिनी पर ही केन्द्रित रहे । सम्राट का कोष निस्सन्देह रिक्त था , पर सम्राट ने उसे परिपूर्ण कर लिया है। अनेक श्रेष्ठियों ने उसे भर दिया है। उनके शस्त्र और सैन्य भी हमसे अधिक तथा उत्तम हैं , अथच हमारी तैयारियों का उसे यथेष्ट ज्ञान है। इसमें जो उसके गुप्तचर श्रमण ब्राह्मणों के रूप में बिखरे हुए हैं , उसकी बहुत सहायता कर रहे हैं । अंग को विजय कर लेने पर वहां के कूट - दन्त जैसे बड़े- बड़े महाशाल ब्राह्मणों को उसने सम्मान और जागीर देकर अपने पक्ष में कर लिया है और भद्दिय के मेंढक सेट्ठी की भांति चम्पा के सम्पूर्ण वणिक भी श्रेणिक बिम्बसार का यशोगान करते हैं ; उन्होंने उसे सत्रह कोटि - भार सुवर्ण दिया है। आर्य भद्रिक ने वहां जो व्यवस्था की है, उससे सभी चम्पावासी प्रसन्न हैं । उधर उसने अपने को श्रमण गौतम का अनुयायी प्रसिद्ध कर दिया है। गत बार जब श्रमण गौतम राजगृह गए , तो वह निरभिमान हो बारह लाख मगध-निवासी ब्राह्मणों और गृहस्थों तथा अस्सी सहस्र गांवों के मुखियों को