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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४६०

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लेकर गृध्रकूट पर पहुंचा। वहां से गौतम को अपने राजोद्यान वेणुवन में ले आया और वह उद्यान उसने गौतम को भेंट कर दिया । ___ “बिम्बसार इस प्रकार अपने को बड़ा धार्मिक, श्रद्धालु और निरभिमान प्रकट करके प्रशंसा का पात्र हो रहा है। इन सब कारणों से हम कह सकते हैं , कि आज मगध सम्राट् युद्ध करने के लिए सर्वापेक्षा अधिक सक्षम है । " जयराज इतना कहकर चुप हुए । फिर उन्होंने कहा - “ उनकी कुछ सन्धियां भी हैं . जिनसे हम लाभ उठा सकते हैं । इनमें सबसे अधिक यह कि हममें से प्रत्येक लड़ेगा अपने संघ की स्वतंत्रता के लिए, परन्तु मागधी सेना के सब सैनिक आर्य रज्जुलों के सैनिक की भांति नौकरी के लिए लड़ते हैं । “ यह सत्य है कि सम्राट ने चम्पा से प्राप्त राज - कोष एवं चम्पा के सेट्ठियों से प्राप्त सत्रह कोटि - भार सुवर्ण प्राप्त करके अपना कोष परिपूर्ण कर लिया है। उसे अंग की लूट - मार का माल भी बहुत मिला है। उसकी सेना भी हमसे अधिक है, परन्तु उसकी बहुत - सी सेना उसके बिखरे हुए तथा अरक्षित साम्राज्य की सीमाओं पर फैली हुई है । अभी अंग की आग भी दबी नहीं है । वहां भी उसकी बहुत - सी सेना फंसी हुई है । उधर अवन्ती और मथुरा का भय सर्वथा निर्मूल नहीं हुआ है और सबसे अधिक यह कि मगध का प्राण वर्षकार हमारे हाथों में है। उसकी प्रत्येक चाल और गतिविधि से परिचित होना चाहिए। हमारी सेना के लिच्छवि सैनिक भी यह समझते हैं कि गण- शासन उनका अपना सुख - स्वातन्त्र्य से भरपूर शासन है; यहां उनसे न तो मनमाना कर लिया जाता है, न उनकी सुन्दरी कन्याएं बलपूर्वक हरण करके महल में डाल दी जाती हैं । न उनके अच्छे रथ और उनके घोड़े छीने जाते हैं । वज्जी ब्राह्मण - जेट्ठों और गृहपति -निगमों से हमें स्वेच्छा से सहयोग मिलने की आशा है। ” सब विवरण सुनकर सेनापति सिंह ने कहा - “मित्र जयराज ने जो कुछ वक्तव्य दिया , वह आपने सुना। अब मैं आपको अपनी सेना की स्थिति बताता हूं । हमने मागधों के नदी-तीर के प्रत्येक दुर्ग के सम्मुख दो - दो दुर्ग तैयार किए हैं । मिही- तट पर तो हमने दुर्गों का तांता ही बांध दिया है । मिही के उस पार की भूमि मल्लों की है, वे हमारे मित्र हैं , अत : वहां हम मिही के उस पार उतर सकते हैं ; आप देख चुके हैं कि मिही की धारा बहुत तीव्र है । इसलिए नीचे से ऊपर आने में नौकाओं को बहुत मन्द चाल से जाना पड़ता है । अत : शत्रु हमारे इन दुर्गों पर आक्रमण करने का साहस नहीं कर सकता । इसलिए हम यहां अपनी रक्षित सैन्य और शस्त्रास्त्र संचित कर सकते हैं ।... “ दूसरी बात यह है कि इधर तो मल्लों की इस तट - भूमि को मागध अपने उपयोग में नहीं ला सकते और बहाव की ओर मिही के मार्ग से हमारी सैनिक नौकाएं तीर की भांति शत्रु पर टूट पड़ सकती हैं । इस समय हमारे पास दो सहस्र से अधिक सैनिक नौकाएं हैं , जिन पर पचास सहस्र भट डटकर युद्ध कर सकते हैं । आगामी दो मासों में हम और भी दो सौ रणतरी बना लेंगे। उधर मगध को वज्जी पर आक्रमण करने के लिए बड़ी - बड़ी नदियों को पार करना पड़ेगा । उनकी गतिविधि को रोकने के लिए हमें नौकाओं की अत्यन्त आवश्यकता होगी । वास्तव में सत्य यही है कि इस युद्ध में हम नौकाओं द्वारा ही विजयी हो सकते हैं । इस सम्बन्ध में हमें एक यह सुविधा है कि मगधों की अपेक्षा हमारे पास मल्लाहों के कुल अधिक हैं । बेगार और असुविधाओं के कारण तथा वज्जीतन्त्र में स्वतंत्रता , भूमि तथा