एक दण्ड दिन चढ़े तक दोनों ओर की सैन्य अपने - अपने व्यूहों में सन्नद्ध खड़ी हो गई। उनके शस्त्र सूर्य की स्वर्णिम आभा में चमक रहे थे। दोनों सेनापतियों ने एक बार सारी सेना में घूम - घूमकर अपनी - अपनी सेना का निरीक्षण किया । मागध सेनापति सोमप्रभ धूमकेतु पर आरूढ़ श्वेतकौशेय परिधान में अपनी सेना से बाहर आ दस धनुष के अन्तर पर खड़ा हो गया । इसी समय मागध सैन्य के प्रधान संचालक ने शंख फूंका। शंखध्वनि के साथ ही मागध सैन्य से जय - जयकार का महानाद उठा । इसी समय लिच्छवि सेनापति सिंह श्वेत अश्व पर आरूढ़, रंगीन परिधान पहने अपने सैन्य से बाहर आ , पांच धनुष के अन्तर पर खड़ा हो गया । अब लिच्छवि सैन्य में भी शंखध्वनि एवं जय - जयकार का नाद उठा । दोनों सेनानायकों ने सूर्य की रश्मियों में चमकते हुए नग्न खड्ग उष्णीष से लगाकर एक - दूसरे का अभिवादन किया । - इसी समय एक बाण मागध सैन्य से छूटकर लिच्छवि सेनापति सिंह के अश्व के निकट भूमि पर आ गिरा। यह देख दोनों ही सेनापति विद्युत्- वेग से अपने - अपने अश्व दौड़ाकर अपनी सैन्य में जा घुसे । तुरन्त ही मागध सैन्य में आक्रमण की हलचल दीख पड़ी , यह देख सिंह ने अवरोध और प्रत्याक्रमण के आवश्यक आदेश सेनानायकों को दे, कुछ आवश्यक सूचनाएं भूर्जपत्र पर लिख , मिट्टी की मुहर कर द्रुतगामी अश्वारोही के हाथ वैशाली भेज दी । __ इसी समय मागधी सेना के व्यूह - बहिर्गत दो सहस्र अश्वारोही खड्ग और शूल हाथ में लिए वेग से आगे बढ़े । सिंह ने लिच्छवि सेनापति महाबल को दो सहस्र कवचधारी अश्वारोही लेकर वक्र गति से आगे बढ़कर बिना ही शत्रु से मुठभेड़ किए घूमकर अपनी सैन्य के दक्षिण पार्श्व-स्थित मध्यभेदी व्यूह में घुस जाने का आदेश दिया । महाबल मन्द गति से आगे बढ़ा । ज्योंही शत्रु पांच धनुष के अन्तर पर रह गए, महाबल ने दाहिनी ओर अश्व घुमाए और वेग से घोड़े फेंके। मागध सैन्य ने समझा कि शत्रु पराङ्मुख हो भाग चले । उन्होंने वेग से दौड़कर भागती हुई लिच्छवि सैन्य पर धावा बोल दिया । यह देखकर सिंह ने मध्यभेदी व्यूह के सेनानायक वज्रनाभि को अपने अश्वारोही और रथी जनों को पाश्र्व से शत्रु पर जनेवा काट करने का आदेश दिया । इससे शत्रु का पृष्ठ देश अरक्षित हो गया तथा शत्रु- सैन्य अपनी कठिनाई समझ गई । इसी समय सिंह ने पक्षभेदी व्यूह को आगे बढ़कर शत्रु- सैन्य में घुसकर उसके व्यूह को छिन्न -भिन्न करने का आदेश दिया । देखते - ही -देखते मागध सैन्य में अव्यवस्था फैलने लगी और उसकी आक्रमण करनेवाली सेना तीन ओर से घिर गई । यह देख सोमप्रभ ने पक्षसेनापति सुगप्त को स्थिर होकर रथियों और हाथियों से युद्ध करने का आदेश दे, कक्ष- स्थित भोज , समुद्रपाल और आन्ध्र - सामन्त भद्र को वृत्ताकार घूमकर शत्रु के पक्ष - भाग पर दुर्धर्ष आक्रमण का आदेश दिया । इस समय मागधी और लिच्छवि सेना आठ योजन विस्तार - भूमि में फैलकर युद्ध करने लगी। अपने पक्ष - भाग पर दो ओर से आक्रमण होता देख सिंह ने हाथियों के शुद्ध व्यूह को शत्रु के अग्रभाग में ठेल देने का आदेश दिया । मदमस्त , उन्मत्त हाथी चीखते चिंघाड़ते , भारी - भारी लौह श्रृंखलाओं को सूंड में लपेटकर चारों ओर घुमाते मागध सैन्य के अग्रभाग को कुचल - कुचलकर छिन्न -भिन्न करने लगे । ऊपर से हाथी - सवार सैनिक वाणवर्षा करते चले। यह देख सोमप्रभ ने आठ सहस्र सुरक्षित पदातिकों को छोटे खड्ग
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