पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/४९२

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150. महाशिलाकण्टक विनाशयन्त्र जिस समय मागध सेनापति ने दुर्धर्ष वेग से वैशाली पर रथ -मुशल अभियान किया था , उसी समय दक्षिण मोर्चे पर लिच्छवि सेनापति ने मगध महासेनापति आर्य भद्रिक को तीन ओर से घेर लिया था । लिच्छवियों के पास भी एक अद्भुत महास्त्र था इसका नाम महाशिलाकण्टक था । इस यन्त्र में कंकड़ - पत्थर, घास - फूस , काठ - कूड़ा, जो कुछ तुच्छ - से तुच्छ साधन मिलें उन्हीं को वह बड़े वेग से शत्रु पर फेंकता था और वह फेंका हुआ पदार्थ महाशिला की भांति शत्रु पर आघात करता था । ____ मागध महासेनापति आर्य भद्रिक ने अपने व्यूह में हाथियों को पक्ष में और अश्वारोहियों को कक्ष में रख , उरस्य में रथियों की स्थापना करके , कठिन पारिपतन्तक व्यूह की रचना की थी । ज्योंही पूर्वीय सीमा - भूमि में सोमप्रभ ने युद्ध छेड़ा , त्योंही लिच्छवि सेनापति सिंह ने महाशिलाकण्टक विनाशयन्त्र को लेकर मकर -व्यूह रच मागध सैन्य पर आक्रमण किया । महाशिलाकण्टक विनाशयन्त्र की प्रलयंकारी मार के सम्मुख मागधसैन्य का शीघ्र ही व्यूह भंग हो गया । महासेनापति सुरक्षित सैन्य को ले व्यूह के पक्ष में स्थित सैन्य संचालन कर रहे थे। विनाशयन्त्र से उनके पक्षस्थ हाथी जब पटापट मरने लगे और शेष विकल हो अपनी ही सैन्य को रौंदते हुए पीछे भाग चले , तब आर्य भद्रिक के लिए सैन्य को व्यवस्था में रखना दुस्सह हो गया । अन्ततः उन्होंने धनुर्धर रथियों को चौमुखा युद्ध करने का आदेश दिया और स्वयं रक्षित सैन्य को ले पचास धनुष के अन्तर पर पीछे हट भागी हुई अव्यवस्थित सेना का पुनर्संगठन करने लगे । साथ ही आसन्न संकट की सम्भावना से उन्होंने सहायक सैन्य भेजने के लिए सोमप्रभ को सन्देश भेज दिया । परन्तु लिच्छवि सेनापति सिंह ने चारों ओर से मागध सैन्य पर ऐसा अवरोध डाला कि मध्याह्न होते - होते आर्य भद्रिक का अपने स्कन्धावार और प्रधान सैन्य से सम्पूर्ण सम्बन्ध -विच्छेद हो गया और वे चारों ओर से लिच्छवि , कोल और कासियों की सेना से घिर गए। ___ अब उन्होंने आक्रमण को रोकने तथा अपनी व्यवस्था बनाए रखने के लिए और हटना ठीक समझा। परन्तु इसका प्रभाव उलटा पड़ा । मागध सैन्य हतोत्साह हो गई । इसी समय सिंह प्रबल वेग से अपने और गान्धारों के चुने हुए सम्मिलित चालीस सहस्र कवचधारी अश्वारोही ले , तथा अगल -बगल रथियों को साथ लिए सुई की भांति मागध सैन्य को चीरते हुए उसके बीच में घुस गए और मागधसेना का सारा संगठन नष्ट कर फिर पक्ष भाग में आ अवस्थित हुए। इस समय सूर्य अपराह्न की पीली -तिरछी किरणें उन परफेंक रहा था , उस गिरते हुए सूर्य की पीली धूप इस महान् सेनानायक के चांदी के समान चमकते हुए श्मश्रुओं में से गहरी चिन्ता और भीति की रेखाएं व्यक्त कर रही थी ।