उपसंहार एक वर्ष बीत गया । युद्ध जय होने पर भी इस युद्ध के फलस्वरूप वैशाली का सारा वैभव छिन्न - भिन्न हो गया था । इस युद्ध में दस दिन के भीतर 96 लाख नर - संहार हुआ था और नौ लिच्छवि , नौ मल्ल , अठारह कासी - कौल के गणराज्य एक प्रकार से ध्वस्त हो गए थे। वैशाली में दूर तक अधजली अट्टालिकाएं , ढहे हुए प्रासादों के दूह, टूटे - फूटे राजमार्ग दीख पड़ रहे थे। बहुत जन वैशाली छोड़कर भाग गए थे। युवक -योद्धा सामन्तपुत्र विरले ही दीख पड़ते थे । बहुतों का युद्ध में निधन हुआ था । बहुत अंधे, लंगड़े, लूले , अपाहिज होकर दु: ख और क्षोभ से भरे हुए वैशाली के अन्तरायण की अशोभावृद्धि करते थे। देश देशान्तरों के व्यापारी अब हट्ट में नहीं दीख पड़ रहे थे। बड़े-बड़े सेट्रिपुत्र थकित , चिंतित और निठल्ले पड़े रहते थे। शिल्पी - कम्मकर भूखे, असम्पन्न , दुर्बल और रोगाक्रान्त हो गए थे। युद्ध के बाद ही जो भुखमरी और महामारी नगर और उपनगर में फैली थी , उससे आबाल - वृद्ध पटापट मर रहे थे। सूर्योदय से सूर्योदय तक निरन्तर जन -हर्योंमें से जिनमें कभी संगीत की लहरें उठा करती थीं - आक्रोश, क्रन्दन , चीत्कार और कलह के कर्ण- कटु शब्द सुनाई देते ही रहते थे। नगर - सुधार की ओर किसी का भी ध्यान न था । संथागार में अब नियमित सन्निपात नहीं होते थे; होते थे तो विद्रोह और गृह- कलह तथा मत -पार्थक्य ही की बातें सुनाई पड़ती थीं । प्रमुख राजपुरुषों ने राज - संन्यास ले लिया था । नये अनुभवहीन और हीन - चरित्र लोगों के हाथ में सत्ता डोलायमान हो रही थी । प्रत्येक स्त्री - पुरुष असन्तुष्ट , असुखी और रोषावेशित रहता था । लोग फटे-हाल फिरते तथा बात - चीत में कुत्तों की भांति लड़ पड़ते थे। मंगल - पुष्करिणी सूख गई थी और नीलहद्य प्रासाद भूमिसात् हो चुका था । लोग खुल्लमखुला राजपुरुषों पर आक्षेप करते , अकारण ही एक - दूसरे पर आक्रमण करते और हत्या तक कर बैठते थे। अपराधों की बाढ़ आ गई थी । बहुत कुल - कुमारियां और कुल - वधू वेश्या बनकर हट्ट में आ बैठी थीं । उन्हें लज्जा नहीं थी । वे प्रसंग आने पर अम्बपाली का व्यंग्यमय उदाहरण देकर कहतीं हम इन पुरुष - पशुओं पर उसी की भांति शासन करेंगी । इनके धन -रत्नों का हरण करेंगी। यह लोक- सम्मत संस्कृत जीवन है , इसमें गर्हित क्या है ? अकरणीय क्या है ? नगर के बाहर एक योजन जाने पर भी नगर का जीवन , धन अरक्षित था । दस्युओं की भरमार हो गई थी , खेत सब सूखे पड़े थे। ग्राम जनपद सर्वत्र ‘ हा अन्न , हा अन्न का क्रन्दन सुनाई पड़ रहा था । भूख की ज्वाला से जर्जर काले - काले कंकाल ग्राम - ग्राम घूमते दीख पड़ते थे। किसी में किसी के प्रति सहानुभूति , प्रेम और कर्तव्य की भावना का अंश भी नहीं रह गया था । ये सब युद्ध के अवश्यम्भावी युद्धोत्तर परिणाम थे । ___ अम्बपाली का द्वार सदैव बन्द रहता था । लोग सप्तभूमि प्रासाद को देख - देखकर क्रोध और आवेश में आकर अपशब्द बकते , तथा अम्बपाली को कोसते थे। सप्तभूमि प्रासाद
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