पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/५१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

के गवाक्षों और अलिन्दों से दूर तक शोभा बिखेरने वाला रंग -बिरंगा प्रकाश अब नहीं दीख पड़ रहा था । वहां सिंहपौर पर अब ताजे फूलों की मालाएं नहीं सजाई जाती थीं - न अब वहां पहले जैसी हलचल थी , युद्ध में जो भाग भंग हो गया था , अम्बपाली ने उसकी मरम्मत कराने की परवाह नहीं की थी - जगह- जगह भीतों , अलिन्दों, खम्भों और शिखरों में दरारें पड़ गई थीं , उन दरारों में जंगली घास -फूस, गुल्म उग आए थे। बीच के तोरणों में मकड़ियों ने जाले पूर दिए थे और कबूतरों- चमगादड़ों ने उसमें घर बना लिए थे । अम्बपाली के बहुत मित्र युद्ध में निहत हुए थे। जो बच रहे थे, वे अम्बपाली के इस परिवर्तन पर आश्चर्य करते थे। दूर - दूर तक यह बात फैल गई थी कि देवी अम्बपाली का आवास अब मनुष्य -मात्र के लिए बन्द हो गया है । अम्बपाली के सहस्रावधि वेतन - भोगी दास - दासी , सेवक, कम्मकर , सैनिक और अनुचरों में अब कोई दृष्टिगोचर नहीं होता था । जो इने -गिने पाश्र्वद रह गए थे, उनमें केवल दो ही व्यक्ति थे, जो अम्बपाली को देख सकते थे और बात कर सकते थे। एक वृद्ध दण्डधर लल्ल और दूसरी दासी मदलेखा। इनमें केवल वृद्ध दण्डधर को ही बाहर - भीतर सर्वत्र आने- जाने की स्वाधीनता थी । ये ही दोनों यह रहस्य जानते थे कि अम्बपाली को बिम्बसार का गर्भ है । ___ यथासमय पुत्र प्रसव हुआ । यह रहस्य भी केवल इन्हीं दो व्यक्तियों पर प्रकट हुआ । वह शिशु अतियत्न से , अतिगोपनीय रीति पर , अति सुरक्षा में उसी दण्डधर के द्वारा यथासमय मगध सम्राट के पास राजगृह पहुंचा दिया गया । मगध - सम्राट् बिम्बसार अर्द्ध-विक्षिप्त की भांति राज -प्रासाद में रहते थे। राज -काज ब्राह्मण वर्षकार ही के हाथ में था । सम्राट् प्राय : महीनों प्रासाद से बाहर नहीं आते, दरबार नहीं करते , किसी राजकाज में ध्यान नहीं देते । वे बहुधा रात - रात - भर नंगे सिर, नंगे बदन , नंगा खड्ग हाथ में लिए प्रासाद के सूने खण्डों में अकेले ही बड़बड़ाते घूमा करते । राज सेवक यह कह गए थे। कोई भी बिना आज्ञा सम्राट के सम्मुख आने का साहस न कर सकता था । एक दिन , जब सम्राट् एकाकी शून्य- हृदय , शून्य - मस्तिष्क , शून्य - जीवन , शून्य प्रासाद में , शून्य रात्रि में उन्मत्त की भांति अपने ही से कुछ कहते हुए से , उन्निद्र, नग्न खड्ग हाथ में लिए भटक रहे थे, तभी हठात् वृद्ध दण्डधर लल्ल ने उनके सम्मुख जाकर अभिवादन किया । सम्राट् ने हाथ का खड्ग ऊंचा करके उच्च स्वर से कहा - “तू चोर है, कह, क्यों आया ? " दण्डधर ने एक मुद्रा सम्राट् के हाथ में दी और गोद में श्वेत कौशेय में लिपटे शिशु का मुंह उघाड़ दोनों हाथ फैला दिए । सम्राट ने देवी अम्बपाली की मुद्रा पहचान मंदस्मित हो शिशु की उज्ज्वल आंखों को देखकर कहा “ यह क्या है भणे? " “ मगध के भावी सम्राट ! देव , मेरी स्वामिनी देवी अम्बपाली ने बद्धांजलि निवेदन