पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/५२०

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“भन्ते, क्या तथागत-प्रवेदित धर्म घर से बेघर प्रव्रजित हो, स्त्रियां स्रोत्र आपत्तिफल, सकृदागामि-फल, अनागामि-फल अर्हत्त्व-फल को साक्षात् कर सकती हैं?" "कर सकती हैं आनन्द!" “याद भन्ते, तथागत-प्रवेदित धर्म-विनय में घर से बेघर प्रवजित हो स्त्रियां अर्हत्त्व-फल को साक्षात् करने योग्य हैं, तो भन्ते! भगवती अम्बपाली इसके लिए सर्वथा सम्यग् उपयुक्त हैं।" कुछ देर अर्हन्त बुद्ध ने मौन रहकर कहा-“तो आनन्द, यदि सुश्री अम्बपाली आठ गुरुधर्मों को स्वीकार करे, तो उसे प्रव्रज्या मिले। उसकी उपसम्पदा हो।" तब आनन्द भगवान् से इन आठ महाधर्मों को समझ, द्वार कोष्ठक पर जहां अम्बपाली फूले-पैर, धूल-भरे शरीर और अश्रु-पूरित नयनों से खड़ी थी, वहां पहुंचे। पहुंचकर अम्बपाली से कहा-“भगवत् की अम्बपाली यदि आठ महाधर्मों को स्वीकार करें, तो शास्ता तुम्हें उपसम्पदा देंगे, प्रव्रज्या देंगे।" "भन्ते आनन्द, जैसे अपने जीवन के प्रभात में-मैं सिर से नहाकर उत्पलकर्षिक माला या अतिमुक्तक माला को दोनों हाथों से चाव-सहित अंग पर धारण करती थी, उसी प्रकार भन्ते आनन्द, मैं इन आठ गुरुधर्मों को स्वीकार करती हूं।" तब आयुष्मान् आनन्द ने भगवत् के निकट जा अभिवादन कर कहा-"भन्ते भगवत्, भगवती अम्बपाली ने यावज्जीवन आठ गुरुधर्मों को स्वीकार किया है।" “आनन्द, यदि स्त्रियां तथागत-प्रवेदित धर्म-विजय में प्रव्रज्या न पातीं, तो यह ब्रह्मचर्य चिरस्थायी होता। सद्धर्म सहस्र वर्ष ठहरता। परन्तु अब, जब स्त्रियां प्रव्रजित हुई हैं, तो ब्रह्मचर्य चिरस्थायी न होगा। सद्धर्म पांच सौ वर्ष टिकेगा। जैसे बहुत स्त्री वाले और थोड़े पुरुषोंवाले, कुल चोरों द्वारा सेतट्ठिका द्वारा अनायास ही में प्र-ध्वंस्य होते हैं इसी प्रकार आनन्द जिस धर्म-विनय में स्त्रियां प्रव्रज्या पाती हैं, वह ब्रह्मचर्य चिरस्थायी नहीं होता। जैसे आनन्द, सम्पन्न लहलहाते धान के खेत में सेतट्टिका रोग जाति पड़ती है, जैसे सम्पन्न ऊख के खेत में मंजिष्ठ रोग-जाति पड़ती है, उसी प्रकार जिस धर्म-विनय में स्त्रियां प्रव्रज्या लेती हैं, वह चिरस्थायी नहीं होता। इसी से आनन्द जैसे कृषक पानी की रोक-थाम को मेड़ बांधता है, उसी प्रकार मैंने भिक्षुणियों के लिए जीवन-भर अनुल्लंघनीय आठ गुरुधर्मों को स्थापित किया है। तू सुश्रीअम्बपाली को ला।" तब आनन्द के साथ देवी अम्बपाली ने भगवान् के निकट आ परिक्रमा कर अभिवादन किया और बद्धाञ्जलि सन्मुख खड़ी हो- बुद्धं सरणं गच्छामि। संघं सरणं गच्छामि! धम्म सरणं गच्छामि! तीन महावाक्य कहे। भगवत् ने उसे प्रव्रज्या दी, उपसम्पदा दी; और स्थिर धीर स्वर से कहा-“कल्याणी अम्बपाली, सुन! जिन धर्मों को तू जाने कि, वह सराग के लिए हैं, वि-राग के लिए नहीं, संयोग के लिए हैं, वि-योग के लिए नहीं, जमा के लिए हैं, विनाश के लिए नहीं; इच्छाओं के बढ़ने के लिए हैं, इच्छाओं के कम करने के लिए नहीं; असन्तोष के लिए हैं, सन्तोष के लिए