पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/५२१

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नहीं; भीड़ के लिए हैं, एकान्त के लिए नहीं; अनद्योगिता के लिए हैं, उद्योगिता के लिए नहीं; दुर्भरता के लिए हैं, सुभरता के लिए नहीं तो तू अम्बपाली शुभे एकांतेन जान कि न वह धर्म है, न विनय है, न शास्ता का शासन है।" कुछ देर मौन रहकर भगवत् ने फिर कहा-“जा अम्बपाली तुझे उपसम्पदा प्राप्त हो गई। अपना और प्राणिमात्र का कल्याण कर!" भगवत् अर्हन्त प्रबुद्ध बुद्ध ने इतना कह-उच्च स्वर से कहा-“भिक्षुओ, महासाध्वी अम्बपाली भिक्षुणी का स्वागत करो!” फिर जयनाद से दिशाएं गूंज उठीं। अम्बपाली ने आंसू पोंछे। भगवत् सुगत की प्रदक्षिणा की और भिक्षुसंघ के बीच में होकर पृथ्वी पर दृष्टि दिए वहां से चल दी। उसके पीछे ही एक तरुण भिक्षु ने भी चुपचाप अनुगमन किया। आहट पाकर अम्बपाली ने पूछा-“कौन है?" “भिक्षु सोमप्रभ आर्ये!" अम्बपाली बोली नहीं, रुकी भी नहीं, फिरकर एक बार उसने देखा भी नहीं। एक मन्दस्मित की रेखा उसके सूखे होंठों और सूखी हुई आंखों में भास गई। वह चलती चली गई। उस समय प्रतीची दिशा लाल-लाल मेघाडम्बरों से रंजित हो रही थी, उसकी रक्तिम आभा आम के नवीन लाल-लाल पत्रों को दुहरी लाली से रंगीन कर रही थी, ऐसा प्रतीत होता था मानो सान्ध्य सुन्दरी ने उसी क्षण मांग में सिन्दूर दिया था। DOO