पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/६८

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साम्राज्य के प्रति, एकान्त एकनिष्ठ रहना और दो व्यक्तियों के प्रति अविनय न करना—एक सम्राट् के प्रति, दूसरे वर्षकार के प्रति।"

"और आचार्यपाद?"

"मैं तुम्हें अभय देता हूं, मेरे लिए तुम वही आठ वर्ष के बालक हो।"

"आचार्यपाद का यह आदेश याद रखूंगा, अनुग्रह भी।"

"तो तुम अभी कुण्डनी को लेकर वयस्य वर्षकार के पास जाओ और उनके आदेश का यत्नपूर्वक पालन करो।"

"कुण्डनी कौन।"

"कल रात जिसे देखा था।"

"वह कौन?"

"तुम्हारी भगिनी।"

"इस अज्ञातकुलशील भाग्यहीन की कोई भगिनी भी है?"

"कहा तो, है। परन्तु इससे अधिक जानने की चेष्टा न करो। गुरुजन के आदेशों पर कौतूहल ठीक नहीं, एक वचन दो सोम।"

"आचार्य की क्या आज्ञा है?"

"यदि वयस्य वर्षकार तुम्हें किसी अभियान पर कुण्डनी के साथ भेजें तो..."

"...अभियान पर कुण्डनी के साथ?"

"छी, छी, मैंने कहा था—गुरुजन के आदेश पर कौतूहल नहीं प्रकट करना चाहिए।"

"भूल हुई आचार्य, इस बार क्षमा करें!"

"मैं कह रहा था, यदि कुण्डनी के साथ तुम्हें यात्रा करनी पड़े तो प्राण देकर कुण्डनी की रक्षा करना।"

"ऐसा ही होगा आचार्य, किन्तु इस समय राजगृह पर मालवराज चण्डमहासेन के अभियान का भय है। मैं समझता था, यहां मेरी सेवाओं की आवश्यकता होगी।"

"यह मगध महामात्य के विचार का विषय है भद्र।" आचार्य ने उपेक्षा से कहा। फिर आचार्य ने उच्च स्वर से कुण्डनी को पुकारा। कुछ ही क्षण में वही रातवाली बाला आ खड़ी हुई। इस समय वह एक लम्बे वस्त्र से अपने को आवेष्टित किए हुए थी। उसका चम्पा की कली के समान पीतप्रभ मुख, उस पर वही विलासपूर्ण मदभरी आंखें और लालसा से लबालब होंठ, कुंचित भृकुटि-विलास, सब कुछ वही रातवाला था। देखकर युवक ने आंखें नीची कर लीं।

आचार्य ने कहा—"तो तुम बिलकुल तैयार हो? यह तुम्हारा भाई और रक्षक सोम है, इस पर विश्वास करना पुत्री! और यह लो, इसे अत्यन्त सावधानी से प्रयोग करना।" इतना कहकर एक हाथीदांत के मूंठ की छोटी-सी किन्तु अति सुन्दर कटार उसे पकड़ा दी। फिर उन्होंने दोनों हाथ उठाकर कहा—"शुभास्ते पन्थान: स्युः!" वे कुछ देर चुप रहे।

मालूम होता है, कहीं से आर्द्रभाव उनके नेत्रों में आ गया। उसे क्षण-भर ही में रोककर कहा—

"सौम्य, सोम, तुम्हें एक और आवश्यक काम करना होगा, महामात्य से आदेश लेकर जब राजगृह से प्रस्थान करने लगो, तब प्रस्थान से पूर्व तुम एक बार आर्या मातंगी से