पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/६९

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साक्षात् करना।"

"आर्या मातंगी कौन?"

आचार्य ने क्रुद्ध नेत्रों से सोम की ओर ताककर कहा—"फिर कौतूहल? क्या तुमने मेरा आदेश नहीं सुना?"

सोम ने नतशिर होकर कहा—"क्षमा आचार्य, मेरी भूल हुई!"

"तुम्हारे अश्व बाहर तैयार हैं।" आचार्य ने रुखाई से कहा—"अब आओ तुम।"

"कुण्डनी ने कटार को बेणी में छिपाकर भूमि में गिरकर आचार्य को प्रणिपात किया। फिर दृढ़ स्वर में कहा—"चलो सोम!"

सोम ने पाषाण-कंकाल के समान खड़े आचार्य का अभिवादन किया और मन्त्रप्रेरित-सा कुण्डनी के पीछे चल दिया।