पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/८३

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में गुलाबी आभा के असाधारण दुर्लभ मुक्ता सुशोभायमान हैं। उसके बड़े-बड़े काले चमकीले नेत्रों और उत्फुल्ल सरस ओष्ठों से आनन्द, विलास और प्रेम की अटूट धारा प्रवाहित हो रही है। उसके एक हाथ में महार्घ अप्रतिम वीणा है। अम्बपाली हड़बड़ाकर उठ खड़ी हुई। उसने आश्चर्यचकित होकर उस पुरुषपुंगव की ओर देखा। अनायास ही उस पर उस पुरुष का प्रभाव छा गया। वह अम्बपाली, जो आज तक किसी पुरुष से प्रभावित नहीं हुई थी, इस पुरुष को देखकर क्षण-भर जड़-स्तम्भित रह गई। पुरुष ने ही पहले कहा—

"जनपदकल्याणी देवी अम्बपाली प्रसन्न हों! क्या मैंने तुम्हारे इस एकान्त विश्राम में व्याघात करके तुम्हें रुष्ट कर दिया है?"

"नहीं–नहीं। परन्तु आप भन्ते, यहां इस सुरक्षित कोष्ठ में बिना अनुमति कैसे आ पहुंचे? क्या प्रहरी सो गए हैं? या आपने उन्हें अपनी माया से मोहित कर दिया है?"

पुरुष ने हंसकर कहा—"नहीं कल्याणी, मैं अदृश्य होकर आकाश-मार्ग से आया हूं। बेचारे प्रहरी मुझे देख नहीं सके।"

अम्बपाली आश्चर्य-मूढ़ होकर बोली—"किन्तु आप हैं कौन भन्ते? क्या आप गन्धर्व हैं?"

"नहीं भद्रे, मैं मनुष्य हूं।"

"परन्तु आपका ऐसा आगमन...?"

"मुझे सिद्धियां प्राप्त हैं। मैं लोपाञ्जन विद्या और खेचर विद्या जानता हूं।"

अम्बपाली खड़ी हो गई। उसने पूछा—"आप साधारण पुरुष नहीं हैं। महानुभाव, आप क्या कोई देव, दानव, यक्ष मुझे ठगने आए हैं?"

"नहीं जनपदकल्याणी, मैंने तुम्हारे अप्रतिम रूप, लावण्य, असह्य तेज, दर्प और लोकोत्तर प्रतिभा की चर्चा अपने देश में सुनी थी। इसी से, केवल तुम्हें देखने मैं बहुत दूर से छद्मवेश में आया हूं। अब मैंने जाना कि सुनी हुई बातों से भी प्रत्यक्ष बहुत बढ़कर है। तुम-सी रूपसी बाला कदाचित् विश्व में दूसरी नहीं है।"

अम्बपाली का कौतूहल कुछ कम हो गया था और उसका साहस लौट आया था। उसने अपने रूप-लावण्य की प्रशंसा सुन कहा—"भन्ते, औरों की प्रशंसा करने और अपना गुप्त प्रेम प्रदर्शन करने में आप वैसे ही कुशल हैं जैसे अदृश्यरूप से आकाश मार्ग द्वारा किसी स्त्री के एकान्त आवास में पहुंच जाने में। किन्तु..."

"किन्तु भद्रे अम्बपाली, मेरे हृदय में तुम्हारा असाधारण प्रेम बहुत प्रथम घर कर गया था। तुम मुझे जीवन और आत्मा से भी अधिक प्रिय हो।"

"भन्ते, ज़रा संभलकर इस प्रेम-मार्ग पर कदम रखिए। कदाचित् वहां आपकी खेचर-सिद्धि और लोपाञ्जन माया काम न दे सकेगी।"

"भद्रे, प्रेम के सत्य मार्ग से सारी ही सिद्धियां तुच्छ हैं। किन्तु मेरा प्रेम वासना की आग में जलता हुआ नहीं है। मैं तुम्हें फलों की सुवासित मदिरा की अपेक्षा अधिक नित्य, अमर और अखण्ड समझता हूं, देवी अम्बपाली!"

"ओह, तो भन्ते! आपका यह प्रेम कुछ अलौकिक-सा प्रतीत होता है।" अम्बपाली ने मुस्कराकर कहा—"भन्ते, इस कोरी प्रशंसा से मेरे हाथ क्या आएगा?"

"प्रेम?"