पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/८८

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18. ज्ञातिपुत्र सिंह

ज्ञातिपुत्र सिंह तक्षशिला के विश्वविश्रुत विश्वविद्यालय में वहां के दिशा-प्रमुख युद्धविद्या के एकान्त आचार्य बहुलाश्व से रणचातुरी और राजनीति का अध्ययन कर ससम्मान स्नातक हो, दस वर्ष बाद वैशाली में लौटे थे। विश्वविद्यालय में अध्ययन करते हुए उन्होंने पर्शुपुरी के शासनुशास के साथ हुए विकट युद्धों में अपने धैर्य, प्रत्युत्पन्नमति और चातुरी का बड़ा भारी परिचय दिया था और उनके शौर्य पर मुग्ध हो आचार्य बहुलाश्व ने अपनी इकलौती पुत्री रोहिणी उन्हें ब्याह दी थी। सो ज्ञातिपुत्र बहुत सामान, बहुत-सा यश और चन्द्रकिरण के समान दिव्य देवांगना पत्नी को संग ले वैशाली आए थे। इससे वैशाली में उनके स्वागत-सत्कार की धूम मच गई थी। उनके साथ पांच और लिच्छवि तरुण विविध विद्याओं में पारंगत हो तक्षशिला के स्नातक की प्रतिष्ठा-सहित वैशाली लौटे थे। तथा गांधारपति ने वैशाली गणतन्त्र से मैत्रीबन्धन दृढ़ करने के अभिप्राय से गान्धार के दश नागरिकों का एक शिष्टदल, दश अजानीय असाधारण अश्व और बहुत-सी उपानय-सामग्री देकर भेजा था। इस दल का नायक एक वीर गान्धार तरुण था। वह वही वीर योद्धा था, जिसने उत्तर कुरु के देवासुर संग्राम में देवराज इन्द्र के आमन्त्रण पर असाधारण सहायता देकर असुरों को पददलित किया था और देवराज इन्द्र ने जिसे अपने हाथों से पारिजात पुष्पों की अम्लान दिव्यमाला भेंट कर देवों के समान सम्मानित किया था।

इन सम्पूर्ण बहुमान्य अतिथियों के सम्मान में गणपति सुनन्द ने एक उद्यान-भोज और पानगोष्ठी का आयोजन किया था। इस समारोह में सम्मिलित होने के लिए वैशाली के अनेक प्रमुख लिच्छवि और अलिच्छवि नागरिक और महिलाएं आमन्त्रित की गई थीं। गण-उद्यान रंगीन पताकाओं और स्वस्तिकों से खूब सजाया गया था, तथा विशेष प्रकार से रोशनी की व्यवस्था की गई थी। सुगन्धित तेलों से भरे हुए दीप और शलाकाएं स्थान-स्थान पर आधारों में जल रहे थे।

ज्ञातिपुत्र सिंह ने एथेन्स का बना एक महामूल्यवान् चोगा पहना था। यह चोगा यवन राजा ने उन्हें उस समय भेंट किया था, जब उन्होंने एथेन्स के वीरों के साथ मिलकर पर्शुपुरी के शासनुशास से युद्ध करके असाधारण शौर्य प्रकट किया था। उनके पैरों में एक पुटबद्ध लाल रंग का उपानह था और सिर पर लाल रंग के कमलों की एक माला यावनीक पद्धति से बांधी गई थी, जो उनके सुन्दर चमकदार केशों पर खूब सज रही थी। इस सज्जा में वे एक सम्पन्न यवन तरुण-से दीख पड़ रहे थे।

उनकी गान्धारी पत्नी रोहिणी ने सुरुचिसम्पन्न काशिक कौशेय का उत्तरीय, अन्तरवासक और कंचुकी धारण की थी। उसके सुनहरे केशों को ताज़े फूलों से सजाया गया था—जिसमें अद्भुत कला का प्रदर्शन था। चेहरे पर हल्का वर्णचूर्ण था; कानों में हीरक-कुण्डल और कण्ठ में केवल एक मुक्तामाला थी। उसकी लम्बी-छरहरी देहयष्टि अत्यन्त गौर,