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पृष्ठ:वैशाली की नगरवधू.djvu/९४

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चुपचाप खड़ी कैसे रह सकती हो? निर्मम पाषाण-प्रतिमा सी! यही विनय तुम्हें सिखाया गया है? ओह! तुम हमारे हास्य में हंसती नहीं और हमारे विलास से प्रभावित भी नहीं होतीं?" रोहिणी ने आंखों में आंसू भरकर मदलेखा को छाती से लगा लिया। फिर पूछा—"तुम्हारा नाम क्या है, हला?" मदलेखा ने घुटनों तक धरती में झुककर रोहिणी का अभिवादन किया और कहा—"देवी, दासी का नाम मदलेखा है।"

"दासी नहीं, हला। अच्छा देवी अम्बपाली, जब तक हम यहां हैं, कुछ क्षणों के लिए मदलेखा और उसकी संगिनी को...क्या नाम है उसका?"

"हज्जे चन्द्रभागा।"

"सुन्दर! मदलेखा और चन्द्रभागा को स्वच्छन्द इस पानगोष्ठी में भाग लेने और आमोद-प्रमोद करने की स्वाधीनता दे दी जाए।"

"जिसमें गान्धारकुमारी का प्रसाद हो!" अम्बपाली ने हंसते हुए कहा। फिर उसने स्वर्णसेन की ओर हाथ करके कहा—

"युवराज, क्यों नहीं तुम वज्जी में दासों को अदास कर देते हो?"

रोहिणी ने कहा—"क्या युवराज ऐसा करने की क्षमता रखते हैं?"

"नहीं भद्रे, मुझमें यह क्षमता नहीं है। इन दासों की संख्या अधिक है। फिर वज्जीभूमि में अलिच्छवियों के दास ही अधिक हैं।"

"वज्जी में अलिच्छवि?"

"हां भद्रे, वे लिच्छवियों से कुछ ही कम हैं। वे सब कर्मकर ही नहीं हैं, आर्य हैं। उनमें ब्राह्मण हैं, वैश्य हैं। उन्हें वज्जी-शासन में अधिकार नहीं हैं, पर उनमें बहुत-से भारी-भारी धनकुबेर हैं। उनके पास बहुत धरती है, लाखों-करोड़ों का व्यापार है जो देश देशान्तरों में फैला हुआ है। उनके ऊपर किसी प्रकार का राजभार नहीं, न वे युद्ध करते हैं। वे स्वतन्त्र और समृद्ध जीवन बिताते हैं। उन्हें नागरिकता के सम्पूर्ण अधिकार वज्जीभूमि में प्राप्त हैं। उनका बिना दासों के काम चल ही नहीं सकता। फिर यवन, काम्बोज, कोसल और मगध के राज्यों से बिकने को निरन्तर दास वज्जीभूमि में आते रहते हैं।"

"परन्तु युवराज, वे कर्मकर जनों से वेतन-शुल्क देकर अपना काम करा सकते हैं।"

"असम्भव है शुभे, इन अलिच्छवियों की गुत्थियां हमारे सामने बहुत टेढ़ी हैं। ये आचार्य आश्वलायन यहां विराजमान हैं। इन्हीं से पूछिए, ये श्रोत्रिय ब्राह्मण हैं और अलिच्छवियों के मुखिया हैं।" आर्य आश्वलायन अपनी मिचमिची आंखों से इन सुन्दरियों की रूप-सुधा पी रहे थे, अब उन्होंने उनकी कमल-जैसी आंखें अपनी ओर उठती देखकर कहा—"शान्तं पापं! शान्तं पापं, भद्रे दास दास हैं और आर्य आर्य हैं। मैं श्रोत्रिय ब्राह्मण हूं, नित्य षोडशोपचार सहित षड्कर्म करता हूं। षडंग वेदों का ज्ञाता हूं, दर्शनों पर मैंने व्याख्या की है और गृह्यसूत्रों का निर्माण किया है। सो ये अधम क्रीत दास क्या मेरे समान हो सकते हैं? आर्यों के समान हो सकते हैं?"

उन्होंने अपने नेत्रों को तनिक और विस्तार से फैलाकर और अपने गन्दे-गलित दांतों को निपोरकर मैरेय के घड़े में से सुरा-चषक भरते हुए तरुण काले दास की ओर रोषपूर्ण ढंग से देखा।

देवी अम्बपाली खिलखिलाकर हंस पड़ी। उन्होंने अपनी सुन्दरी दासी मदलेखा की